हिन्दुस्तान जिंक सहित कई माइंस में कर चुके है काम
अधिकारियों की सलाह पर रैट-होल माइनर्स ने वही काम किया है। इसके लिए पांच टीमें बनाई गईं, जिनमें से एक-एक टीम में दो-दो मजदूरों ने महज 21 घंटे में बखूबी इस काम को अंजाम देते हुए कामयाबी हासिल की। हिन्दुस्तान जिंक सहित कई माइंस में काम करने वाले इंजीनियर जैन का कहना है कि मशीनों के फेल होने के बाद उन्होंने प्रोजेक्ट पर लगे माइनिंग इंजीनियरिंग ऑफ इंडिया के जोसफ से संपर्क साधा और वाट्सऐप पर लगातार सुझाव देते रहे।
क्या है रैट-होल माइनिंग
– उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए जब हाइटेक आयातित ऑगर मशीनें नाकाम रहीं तो परंपरागत खुदाई कर्मियों को बुलाना पड़ा, जो खदान में हाथ से खुदाई के विशेषज्ञ हैं।
– मैन्युअल ड्रिलिंग की परंपरागत पद्धति को रैट-होल माइनिंग’ कहा जाता है। हालांकि, असुरक्षित होने के कारण इसे प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसमें फावड़े जैसे परंपरागत साधनों का इस्तेमाल किया जाता है।
– विशेषज्ञों ने बताया कि एक आदमी ड्रिलिंग करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है। ये धातु की बाधाओं को भी काटने में कुशल होते हैं।
– रैट-होल माइनिंग मेघालय में खनन का आम तरीका है, जहां कोयले की परत बहुत पतली है और अन्य तरीका आर्थिक रूप से अव्यवहारिक। कोयला चोरी के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है।
क्यों लगाया गया प्रतिबंध
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अवैज्ञानिक होने के कारण 2014 में रैट-होल माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी यह प्रथा बड़े पैमाने पर जारी है। इसकी वजह से कई बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। साल 2022 में मेघालय हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त एक पैनल ने पाया कि मेघालय में रैट-होल माइनिंग बेरोकटोक जारी है। सुरंगों का आकार छोटा होने के कारण इसमें बच्चों का उपयोग किया जाता है।
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हो चुकी हैं दुर्घटनाएं
पूर्वोत्तर राज्य में 2018 में अवैध खनन में शामिल 15 लोग बाढ़ वाली खदान के अंदर फंस गए थे। दो महीने से अधिक समय तक चले बचाव अभियान के दौरान केवल दो शव ही बरामद किये जा सके। ऐसी ही एक और दुर्घटना 2021 में हुई जब पांच खनिक बाढ़ वाली खदान में फंस गए। बचाव दल द्वारा एक महीने के बाद अभियान बंद करने से पहले तीन शव पाए गए थे।