जीवनसाथी के बिना ही चढ़ती हैं राजनीति की सीढ़ियां
कुछ मामलों में महिलाएं अपने पति की मौत के बाद ही राजनीति में कदम बढ़ा पाईं (इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, शीला दीक्षित), वहीं कुछ मामलों में उन्होंने शादी ही नहीं की (जे. जयललिता, ममता बनर्जी, मायावती, उमा भारती), तो कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं, जब उनको अपने पति से अलग होना पड़ा ( वसुंधरा राजे) तभी वो राजनीति में अपनी पहचान बना सकीं। मास लीडर बनने के बाद इन महिलाओं का व्यापक राजनीतिक प्रभाव देखा गया है। भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों और कई क्षेत्रीय दलों से अलग-अलग महिला राजनेता जननायक के स्तर तक पहुंची हैं और राष्ट्रीय राजनीति को इन्होंने नई दिशा दी है।वामपंथः प्रगतिशीलता का दावा पर मातृशक्ति अस्वीकार
अपेक्षाकृत प्रगतिशील समझे जाने वाले वामपंथी दलों से अब तक कोई महिला राजनेता अपने लिए खुद का जनाधार कायम करने में सफल नहीं हो सकी है।पश्चिम में मिलता है जीवन साथी का पूरा साथ
पश्चिमी देशों में सफल सियासी पारी खेलने वाली महिलाओं को जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिलता है। ब्रिटेन में मारग्रेट थैचर, जर्मनी में एंजेला मर्केल और अमरीका में भारतीय मूल की कमला हैरिस इसके कुछ उदाहरण हैं।पति की मौत के बाद राजनीति में कदम : इंदिरा गांधी
चार बार (1967 से 1977 और 1980-1984) भारत की प्रधानमंत्री रहने वाली इंदिरा गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा तो उन्हें गूंगी गुड़िया का नाम दिया गया था। पति और पिता दोनों के राजनीति में होने के बाद भी सक्रिय राजनीति में कदम पति फिरोज गांधी की 1960 में मौत के करीब 4 साल बाद ही रख सकीं। पहले वह 1964 में भारत की सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं और इसके बाद 1966 में भारत की प्रधानमंत्री। इसके बाद इंदिरा ने भारत की राजनीति को इतना अधिक बदला कि एक समय ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ भी कहा गया।सोनिया गांधी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वालीं सोनिया गांधी ने पति और पूर्व पीएम राजीव गांधी की 1991 में हत्या के करीब 6 साल बाद ही राजनीति में कदम रखा। 1997 में पहली बार कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनीं। दो साल बाद 1999 में एक साथ दो संसदीय सीटों कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तर प्रदेश के अमेठी से चुनाव लड़ा और जीता। उनके नेतृत्व में कांग्रेस 2004-2014 तक में सत्ता में रही और सोनिया गांधी ने सत्तारूढ़ गठबंधन यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस की अध्यक्ष और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के चेयरमैन के रूप में देश की राजनीति और नीतियों को दिशा दी।शीला दीक्षित
दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित के पति विनोद दीक्षित आइएएस थे और ससुर उमा शंकर दीक्षित भारत की राजनीति का अहम चेहरा। उन्होंने राजनीति में स्वेच्छा से कदम पति के मौत के बाद ही रखा। उनके नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बनी। हालांकि इसके पहले राजीव गांधी के पहले कार्यकाल के दौरान कन्नौज से सांसद और केंद्र में तीन साल के लिए राज्य मंत्री भी रहीं।जन सेवा के लिए विवाह से दूरी : जे. जयललिता
1991 से 2016 के बीच छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं और 1988 से 2016 के बीच एआइएडीएमके की सबसे लंबे समय तक महासचिव। दक्षिण की सौ से ज्यादा फिल्मों में अहम भूमिका निभाने वालीं जयललिता ने ऑन स्क्रीन भले ही कई बार विवाहिता की भूमिका निभाई हो पर उन्होंने असल जीवन में कभी किसी को जीवनसाथी नहीं बनाया।मायावती
उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री और कई बार सांसद रहीं मायावती भारत की दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने भी राजनीति को प्राथमिकता देते हुए विवाहित जीवन से खुद को दूर ही रखा है।ममता बनर्जी
भारतीय राजनीति में दीदी के नाम से पहचानी जाने वालीं ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में वर्तमान राजनीति का पर्याय बन चुकी हैं। वह 2011 से ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं और कई बार केंद्र में अहम मंत्रालय संभाल चुकी हैं। तृणमूल कांग्रेस के रूप में पश्चिम बंगाल के लोगों को वामपंथी राजनीति का विकल्प दिया पर खुद कभी किसी को जीवनसाथी नहीं बनाया।उमा भारती
दस साल से मध्यप्रदेश में चली आ रही कांग्रेस सरकार को उखाड़ने में अहम भूमिका निभाई और 2003 में उनके नेतृत्व राज्य में भाजपा सरकार बनी। कई बार विधायक, सांसद और केंद्र में मंत्री रहीं। भाजपा से जुड़े रहे विचारक केएन गोविंदाचार्य से प्रेम की स्वीकारोक्ति के बावजूद सार्वजनिक जीवन की जिम्मेदारियों के चलते कभी किसी को जीवनसाथी नहीं बनाया।पति से तलाक के बाद राजनीति में कदम
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का अहम चेहरा। दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री, कई बार विधायक और सांसद रह चुकीं वसुंधरा राजे पति हेमंत सिंह से शादी के एक साल बाद ही 1973 में अलग हो गई थीं। फिलहाल भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। यह भी पढ़ें
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