अध्ययन के अनुसार, भारत में वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे का प्रदूषण स्तर भी दैनिक मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पीएम 2.5 पार्टिकल का प्रति घन मीटर 15 माइक्रोग्राम से ज्यादा का स्तर सेहत के लिए खतरनाक है, लेकिन भारत में यह स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रखा गया है जो डब्ल्यूएचओ की सिफारिश से चार गुना है।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में गुरुवार को प्रकाशित यह अध्ययन भारत में अल्पकालिक रूप से बढ़ने वाले वायु प्रदूषण और मृत्यु के जोखिम के बीच संबंध का आकलन करने वाला पहला शहर आधारित विश्लेषण है। अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में प्रदूषण के मामले में सुरक्षित समझे जाने वाले शहर जैसे शिमला भी सुरक्षित नहीं हैं।
इतना ही नहीं अध्ययन में दावा किया गया है कि कम प्रदूषित शहरों में प्रदूषण में मामूली बढ़ोतरी से अधिक प्रदूषित शहरों की तुलना में मौतों में ज्यादा बढ़ोतरी होती है। अध्ययन करने वाली अंतरराष्ट्रीय टीम में वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और नई दिल्ली के क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल सेंटर के शोधकर्ता भी शामिल थे।
शिमला में प्रदूषण और मौत का संबंध ज्यादा स्पष्ट दो दिनों (अल्पकालिक एक्सपोजर) के लिए पीएम 2.5 पार्टिकल के प्रदूषण में औसतन 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से मौत का जोखिम 1.4 फीसदी बढ़ जाता है। प्रदूषण में इतनी ही वृद्धि पर जब शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण को वायु गुणवत्ता के भारतीय मानकों से नीचे के अवलोकनों तक सीमित रखा, तो मृत्यु जोखिम दोगुना (2.7 प्रतिशत) पाया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि दिल्ली में पीएम 2.5 में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से दैनिक मृत्यु दर में 0.31 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि बेंगलुरु में प्रदूषण में इतनी ही बढ़ोतरी पर यह वृद्धि 3.06 प्रतिशत थी। अध्ययन में कहा गया है कि अपेक्षाकृत कम वायु प्रदूषण वाले शहर जैसे बेंगलूरू, चेन्नई और शिमला में प्रदूषण और मौत का कारण-परिणाम संबंध विशेष रूप से मजबूत देखा गया। यानी इन शहरों में प्रदूषण की मात्रा में अल्प बढ़ोतरी से भी मौतों की संख्या ज्यादा बढ़ोतरी हुई। हालांकि अध्ययन में आगाह किया गया है कि, इन शहरों में स्थानीय रूप से उत्पन्न प्रदूषक भी इन अतिरिक्त मौतों का कारण बन रहे हों।