Tribe Weird Tradition: Diwali के दिन शोक क्यों मनाती है भारत की ये जनजाति? चौंकाने वाली हैं मान्यताएं
Tribe Weird Tradition on Diwali: क्या आप जानते हैं भारत में एक ऐसा भी समुदाय है जो इस त्योहार को खुशियां नहीं बल्कि दुख (Tribe that mourn on Deepawali) मनाता है।
Tribe Weird Tradition on Diwali: प्रभु श्रीराम (Lord Rama) के अयोध्या (Ayodhya) लौटने के जश्न को देश-दुनिया में दिवाली या दीपावली के नाम से मनाया जाता है। दिवाली खुशियों का त्योहार है। भारत ही नहीं, दुनिया में जहां-जहां भारतीय बसे हैं, वे सभी दीया या लाइटें जलाकर दीवाली को धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं। क्या आप जानते हैं भारत में एक ऐसा भी समुदाय है जो इस त्योहार को खुशियां नहीं बल्कि दुख (Tribe that mourn on Deepawali) मनाता है। इस जनजाति के लोग इस त्योहार के मौके पर भगवान को नहीं बल्कि मरे हुए लोगों को याद करते हुए मनाते हैं इसीलिए ये लोग दिवाली को शोक पर्व (Indian tribe does not celebrate Diwali) के रूप में मनाते हैं।
भारत के इन राज्यों में पाई जाती है ये जनजाति
भारक के राजस्थान से लेकर उत्तराखंड और UP, बिहार में ये थारू जनजाति (Tharu Tribe Diwali Tradition) के लोग रहते हैं। भारत के साथ ही थारू जनजाति के लोग नेपाल में भी रहते हैं। इस जनजाति (Tharu tribe diwali tradition) का नाम राजस्थान के थार रेगिस्तान के नाम पर पड़ा। थारू जनजाति के वंशज राजस्थान के राजपूत माने जाते थे। ये भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक है और इनकी कई अनोखी और विचित्र मान्यताएं हैं।
दिवाली को शोक पर्व के रूप में मनाने की परंपरा
दिवाली के दिन पूरी दुनिया जश्न में डूबी होती है ये जनजाति शोक (Tharu tribe remember loved ones who died on Diwali) मनाती है। इस जनजाति से जुड़ी ये मान्यता सबसे हैरान करने वाली है। इसके पीछे का कारण आपको चौंका देगा। इस जनजाति के लोग दिवाली नहीं मनाते, वे लोग इस दिन को दिवारी कहते हैं। इस दिन वो अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
थारू जनजाति के लोग ऐसे मनाते हैं शोक
ब्रिटैनिका वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार भारत में थारू जनजाति के 1,70,000 से ज्यादा और नेपाल में 15 लाख के करीब लोग रहते हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो थारू जनजाति के लोग दिवाली के दिन अपने परिवार गुजर चुके लोगों को याद करते हैं। इस दिन वो अपने स्वर्गवासी परिवार वालों के लिए एक पुतला तैयार करते हैं और दिवारी के दिन उसे जलाते हैं। पुतला जलाने के बाद वो अपने सभी घर वालों को भोज पर घर बुलाते हैं। दिवाली मनाने के अलावा इस जनजाति के राना, कठौलिया और डगौरा धड़ों में महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं।