तो वहीं मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस कानून को जरूरी बताया और कहा कि, अभी तक राज्य सरकार के पास कुलपति को नियुक्त करने की शक्ति नहीं थी। इस वजह से उच्च शिक्षा काफी प्रभावित होती है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से भी इस स्थिति की तुलना की। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विधायकों से इस बिल के समर्थन में वोट करने को कहा। उन्होंने कहा, “पीएम नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी कुलपतियों का चयन राज्य सरकार ही करती है, राज्यपाल नहीं।”
इस कानून पर बोलते हुए मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि, “परंपरा के अनुसार, राज्यपाल राज्य सरकार के परामर्श से कुलपति की नुयुक्ति करता है, लेकिन पिछले 4 सालों में एक नया चलन सामने आया है। अब राज्यपाल अपने मन से यह नियुक्ति करते हैं। ऐसा लगता है जैसे कि यह उनका विसेषाधिकार है। ये सरकार और लोगों के शासन के खिलाफ है।”
यह कानून उस दिन पेश किया गया जब राज्यपाल आर. एन. रवि ऊटी में राज्य, केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के 2 दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने प्रारंभिक चरण में विधेयक का विरोध किया, जबकि मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक ने कांग्रेस विधायक दल के नेता के. सेल्वापेरुन्थगई की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता को लेकर की गई टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए विधेयक के पारित होने से पहले सदन से बहिर्गमन किया। विपक्षी दल पट्टाली मक्कल काची (PMK) ने विधेयक का समर्थन किया।
आपको बता दें, इससे पहले राज्य विधानसभा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया था। इसके बाद कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट यानी सीयूईटी के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था और अब विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से छीनने के लिए प्रस्ताव पास किया गया है। हालांकि, पहले के दोनों प्रस्ताव राज्यपाल और राष्ट्रपति की ओर से खारिज कर लौटा दिए गए थे।