इस साल पहला सूर्य ग्रहण 5 अप्रैल को लगने जा रहा है। इस दिन भी अमावस्या ही है। यह सूर्य ग्रहण पूर्ण ग्रहण होगा। इसे उत्तरी अमरीका, मेक्सिको, यूनाइटेड स्टेट्स और कनाडा सहित प्रशांत महासागर से देखा जाएगा। भारत(India) में यह यह सूर्य ग्रहण भारत से नहीं देखा जा सकेगा। ऐसे में सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। आइए आज हम आपको बताते हैं कि सूर्यग्रहण कितने प्रकार का होता है और सूतक काल की गणना कैसे होती है…
सूर्य ग्रहण के प्रकार | Types Of Solar Eclipse
पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse) सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरते हुए जब चंद्रमा पूर्ण रूप से सूरज का ढक लेतेा है तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। इसमें कुछ मिनट के लिए पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है। इस साल 5 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण पूर्ण ग्रहण ही है। इसमें चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। वह सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है।
इस सूर्य ग्रहण में एक ही ग्रहण पृथ्वी के अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरह से नजर आता है। कहीं यह आंशिक होता है तो कहीं या पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। इसके साथ ही पृथ्वी के कई हिस्सों पर सूर्य ग्रहण की अंधकारमय छाया पड़ती है। इस बदलते सूर्य ग्रहण को ही हाइब्रिड सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
सूतक काल के समय सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक काल शुरू होता है। इस दौरान तमाम धार्मिक कार्य बंद रहते हैं। सूतक काल का धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है। चंद्र ग्रहण में यह 9 घंटे पहले शुरू होता है।
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वलयाकार सूर्य ग्रहण तब लगता है जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आता तो है लेकिन पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी अधिक होती है और ऐसे में वह पूर्ण रूप से पृथ्वी को ढक नहीं पता है। ऐसे में चंद्रमा सूर्य से छोटा नजर आता है और ग्रहण के समय सूर्य का किनारा आग के छल्ले की तरह दिखाई देता है। इसे वलयाकार सूर्यग्रहण और रिंग ऑफ फायर (Ring Of Fire) भी कहा जाता है।
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आंशिक सूर्य ग्रहण। यह ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा सूरज के केवल किसी भी थोड़े हिस्से को ढक लेता है। इससे आकाश अंधकारमय नजर नहीं आता है। इस ग्रहण में सूर्य का केवल एक हिस्सा ही काला दिखता है। इसके कारण ही इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं।