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पिछड़ी जातियों के कैदियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए क्या सुनाया आदेश

पिछड़ी जातियों के कैदियों से सफाई, झाड़ू लगाने और उच्च जाति के कैदियों को खाना पकाने का काम देना जातिगत भेदभाव है।

नई दिल्लीOct 04, 2024 / 03:21 pm

Devika Chatraj

जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव और श्रम विभाजन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसले में कहा कि पिछड़ी जातियों के कैदियों से सफाई, झाड़ू लगाने और उच्च जाति के कैदियों को खाना पकाने का काम देना जातिगत भेदभाव है। यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कई राज्यों के जेल मैनुअल के उन प्रावधानों को खारिज कर दिया, जिनके मुताबिक जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाते थे। कोर्ट ने कहा कि जेल रजिस्टरों में जाति का कॉलम हटाया जाना चाहिए।
सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जेलों में जाति-आधारित कार्य आवंटन खत्म करने के लिए तीन महीने में जेल मैनुअल में संशोधन का निर्देश दिया। पीठ ने केंद्र सरकार को भी जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ मॉडल जेल नियमों में जरूरी बदलाव का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि जेल मैनुअल में आदतन अपराधियों का संदर्भ उनकी जाति या जनजाति के बगैर विधायी परिभाषाओं के मुताबिक होना चाहिए। कैदियों से खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई कराने की इजाजत नहीं दी जाएगी। किसी विशेष जाति से सफाई कर्मियों का चयन करना पूरी तरह मौलिक समानता के खिलाफ है। पीठ ने जाति के आधार पर भेदभाव के मामलों से निपटने के लिए पुलिस को ईमानदारी से काम करने का आदेश दिया।

राजस्थान और यूपी के प्रावधानों पर सवाल

पीठ ने राजस्थान के जेल मैनुअल के उन प्रावधानों पर सवाल उठाए, जिनमें विमुक्त (घुमंतू और खानाबदोश) जनजातियों का उल्लेख है। उत्तर प्रदेश के जेल मैनुअल के उन प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई गई, जिसमें कहा गया कि साधारण कारावास वाले व्यक्ति को तब तक छोटा काम नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक उसकी जाति ने ऐसा काम न किया हो। पीठ ने फैसले में कहा, कोई भी समूह मैला ढोने वाले वर्ग के रूप में पैदा नहीं होता। कोई छोटा काम करेगा या नहीं, कोई महिला खाना बना सकती है या नहीं… ये अस्पृश्यता के पहलू हैं। इनकी इजाजत नहीं दी जा सकती।

सीजेआइ बोले, अच्छे शोध वाली याचिका

पत्रकार सुकन्या शांता ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र समेत 13 राज्यों की जेलों में भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर करते हुए जनहित याचिका दायर की थी। फैसला सुनाने से पहले सीजेआइ चंद्रचूड़ ने कहा कि यह अच्छे शोध वाली याचिका है। उन्होंने वकीलों को मामले में प्रभावी ढंग से बहस के लिए बधाई दी। सीजेआइ ने कहा, मैम सुकन्या शांता, अच्छी तरह लेख लिखने के लिए धन्यवाद। यह नागरिकों की शक्ति उजागर करता है।

क्रूरता रहित मानवीय व्यवहार किया जाए

  1. जाति के आधार पर कैदियों को अलग करने से जातिगत भेदभाव को बल मिलेगा। कैदियों को भी सम्मान का अधिकार है।
  2. कैदियों के साथ मानवीय और क्रूरता रहित व्यवहार किया जाना चाहिए। कैदियों को सम्मान न देना औपनिवेशिक व्यवस्था का अवशेष है।
  3. जेल व्यवस्था को कैदियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति विचारशील होना चाहिए।

एमपी समेत कई राज्यों ने नहीं दिया जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जनवरी में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 13 राज्यों से जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था। उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को छोड़ किसी राज्य का जवाब नहीं मिला।
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