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‘जमानत नियम, जेल अपवाद का सिद्धांत’, Supreme Court ने कहा – ट्रायल कोर्ट को मुकदमे की समय सीमा देना गलत

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अपीलकर्ता ढाई साल की अवधि तक जेल में रहा है। राज्य द्वारा दायर किए गए काउंटर से पता चलता है कि कोई पूर्ववृत्त रिपोर्ट नहीं किया गया। इसलिए मामले के तथ्यों में अपीलकर्ता को इस सुस्थापित नियम के अनुसार जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है।

नई दिल्लीNov 26, 2024 / 02:53 pm

स्वतंत्र मिश्र

Supreme Court

Supreme Court on Bail : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद’ के सिद्धांत को दोहराते हुए कहा कि हाईकोर्टों को ट्रायल कोर्टाें को मुकदमे तय करने की समय सीमा तय नहीं करनी चाहिए। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एजे मसीह की बेंच ने जाली नोटों के मामले में एक ऐसे आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की जो ढाई साल से जेल में बंद था। हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट को मुकदमे के जल्द निपटारे के निर्देश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रवैयों की निंदा

Supreme Court : शीर्ष अदालत ने हाईकोर्टाें के इस रवैये की निंदा की और कहा कि जेल अपवाद है और जमानत नियम। हमने विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा पारित कई आदेशों में देखा है कि नियमित तरीके से जमानत के लिए आवेदनों को खारिज करते समय हाईकोर्ट समय सीमा तय कर देते हैं। इस तरह के निर्देश ट्रायल कोर्ट के कामकाज को प्रभावित करते हैं क्योंकि उनके पास कई बहुत पुराने मामले लंबित रहते हैं।

अपीलकर्ता ढाई वर्ष तक जेल में रहा बंद

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अपीलकर्ता ढाई साल की अवधि तक जेल में रहा है। राज्य द्वारा दायर किए गए काउंटर से पता चलता है कि कोई पूर्ववृत्त रिपोर्ट नहीं किया गया। इसलिए मामले के तथ्यों में अपीलकर्ता को इस सुस्थापित नियम के अनुसार जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है।”

HC के कई आदेशों पर गौर करने के बाद दिया ये बयान

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस आदेश को जारी करने से पहले हमने विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा पारित कई आदेशों में देखा है कि नियमित तरीके से जमानत के लिए आवेदनों को खारिज करते समय हाईकोर्ट मुकदमों के समापन के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय कर रहे हैं। इस तरह के निर्देश ट्रायल कोर्ट के कामकाज को प्रभावित करते हैं क्योंकि कई ट्रायल कोर्ट में निपटान के बहुत पुराने मामले लंबित हैं। जमानत की अर्जी खारिज करने के बाद अदालतें मुकदमे के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करके आरोपी को किसी तरह की संतुष्टि नहीं दे सकती हैं।

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