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Supreme Court on Madarsa: ‘मदरसों को मिलती रहेगी फंडिंग, विद्यार्थियों के सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर पर रोक’

Supreme Court ने एनसीपीसीआर की सिफारिशों को खारिल कर दिया है। एनसीपीसीआर ने मदरसों की मान्यताओं वापस लेने के पीछे कई तर्क दिए। जानिए क्या है पूरा मामला?

नई दिल्लीOct 22, 2024 / 12:17 pm

स्वतंत्र मिश्र

supreme court of India

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की उन सिफारिशों पर सोमवार को रोक लगा दी, जिनमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 (RTE Act 2009) का पालन नहीं करने वाले मदरसों (Madarasa) की मान्यता वापस लेने, उनकी सरकारी मदद रोकने और सभी मदरसों का निरीक्षण करने को कहा गया था। शीर्ष कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त और सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर भी रोक लगा दी।

क्या थी NCPCR की सिफारिश?

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एनसीपीसीआर की सिफारिशों को चुनौती देने वाली इस्लामी मौलवियों के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया। पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने की इजाजत दे दी। एनसीपीसीआर ने कहा था कि जब तक मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन नहीं करते तब तक उन्हें दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए।

जानिए पूरा मामला

एनसीपीसीआर ने सात जून को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और 25 जून को केंद्रीय शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव को पत्र लिखकर सभी मदरसों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने 26 जून और त्रिपुरा सरकार ने 28 अगस्त को सभी कलेक्टरों को मदरसों की विस्तृत जांच के लिए लिखा था।

यूपी सरकार को सात माह में दूसरा झटका

मदरसों के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से सात महीने में दूसरा झटका लगा है। इससे पहले मदरसा अधिनियम, 2004 को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच अप्रेल को रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका शीर्ष कोर्ट में लंबित है।

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