कोर्ट ने कहा कि इसके लिए निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने सहित विभिन्न तरीकों पर विचार करना चाहिए। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने टिप्पणी की कि इतनी बड़ी मात्रा में अनुपचारित ठोस कचरे का उत्पादन सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राजधानी के लिए यह एक अहम मुद्दा है जिसे राजनीति से परे रखना चाहिए।
अदालत के निर्देश पर आवास व शहरी विकास मंत्रालय की ओर से पेश हलफनामे में कहा गया कि प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट का उत्पादन गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा शहरों में इसकी प्रसंस्करण क्षमता से अधिक है। कोर्ट ने इसे चौंकाने वाला बताया और कहा कि दिल्ली और आसपास के इलाकों के हालात देखते हुए लगता है कि कचरा बढ़ेगा और एमसीडी व अन्य विभाग इससे निपटने की स्थिति में नहीं हैं। कोर्ट ने मंत्रालय के सचिव को समाधान खोजने के लिए कहा और चेताया कि अधिकारी कारगर प्रस्ताव लाने में विफल रहते हैं, तो अदालत को कठोर आदेश पारित करना पड़ेगा।