खदान व खनिज भूमि पर रॉयल्टी की वसूली राज्यों का कानूनी हक
सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ का 8:1 के बहुमत वाला फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि संविधान की सूची दो की प्रविष्टि 50 के तहत संसद के पास खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है। प्रविष्टि 50 खनिज विकास से संबंधित नियमों और खनिज अधिकारों पर टैक्स से संबंधित है। सीजेआई ने कहा कि शीर्ष कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ का 1989 का फैसला गलत था, जिसमें कहा गया था कि रॉयल्टी एक टैक्स है। संविधान पीठ में सीजेआई और जस्टिस नागरत्ना के अलावा जस्टिस ऋषिकेश रॉय, ए.एस. ओका, जे.बी. पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा, ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। फैसले की खास बातें
केंद्र को रॉयल्टी की दरों में संशोधन का अधिकार
- केंद्र सरकार के पास अधिसूचना के जरिए रॉयल्टी दरों में संशोधन का अधिकार है, लेकिन ऐसे बदलाव हर तीन साल में एक बार से ज्यादा नहीं हो सकते।
- केंद्रीय खान-खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957राज्यों की खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी वसूलने की शक्ति को सीमित नहीं करता।
- जब तक संसद कोई सीमा नहीं लगाती, तब तक खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी लगाने का राज्य का पूर्ण अधिकार अप्रभावित रहता है।
- खदान पट्टेधारकों की ओर से खनिज भूमि मालिकों को दी जाने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जा सकता। रॉयल्टी खदान के लाइसेंस धारक और राज्य सरकार के बीच एक तरह के कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा है।
टैक्स नहीं रॉयल्टी
रॉयल्टी को टैक्स नहीं बताते हुए पीठ ने फैसले में कहा कि रॉयल्टी संविदात्मक प्रतिफल है, जो खनन पट्टादाता की ओर से पट्टेदार को दिया जाता है। सरकार को किए गए भुगतान को सिर्फ इसलिए टैक्स नहीं माना जा सकता कि किसी कानून में बकाया राशि की वसूली का प्रावधान है।
इन मुद्दों पर फैसला
संविधान पीठ ने इन विवादास्पद मुद्दों पर फैसला सुनाया कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत टैक्स है? क्या सिर्फ केंद्र को इसकी वसूली करने की शक्ति है या राज्यों के पास भी अपने क्षेत्र में खनिज वाली भूमि पर लेवी लगाने का अधिकार है?
राजस्थान, एमपी और छग समेत कई राज्यों को फायदा
इस फैसले से खनिजों के मामले में समृद्ध राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को बड़ा फायदा होगा। इस मामले में अगले बुधवार को फिर सुनवाई होगी, जिसमें पीठ विचार करेगी कि फैसले को बीते दिनों से लागू किया जाए या फैसले के बाद से।