इस मामले में दो साल बाद उस समय यू-टर्न आया जब अभियोजक ने आरोप तय करने के बिंदु पर बहस करते हुए अदालत से थरूर पर आत्महत्या के लिए उकसाने या वैकल्पिक रूप से उनके खिलाफ हत्या के आरोप तय करने के लिए मुकदमा चलाने का अनुरोध अदालत से किया।
Read More: केंद्र के आदेश पर CBI करेगी दिल्ली सरकार की 1,000 लो फ्लोर बसों की खरीद की जांच हत्या का अपराध बताना मुश्किल इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए स्पेशल जज गीतांजलि गोयल ( Special Judge Geetanjali Goel ) ने सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में आरोपी शशि थरूर को बरी कर दिया। स्पेशल जज ( Special Judge ) ने अपने आदेश में कहा कि पहली नजर में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि यह मामला हत्या की धारा के तहत आता है।
दिल्ली की विशेष अदालत ( Delhi Special Court ) ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड ( medical board ) की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद इसी नतीजे पर पहुंचना संभव हो पाया। जबकि प्रारंभिक चरण में जांच इंजेक्शन के निशान की उपस्थिति के कारण सुनंदा की हत्या की दिशा में आगे बढ़ रही थी। लेकिन जांच के दौरान सामने यह आया कि सुनंदा पुष्कर के उपचार के दौरान किम्स, त्रिवेंद्रम में एक प्रवेशनी इंजेक्शन लगाने की वजह से उनके शरीर पर यह निशान था।
पुष्कर के शरीर पर मिले इंजेक्शन के निशान पर कोर्ट ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में 72 घंटे के बाद निशान गायब हो जाता है। लेकिन मृतक के मामले में यह बना रहता है। निशान के आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि पुष्कर को किसी जहरीले पदार्थ को इंजेक्ट करने के लिए एक इंजेक्शन दिया गया था।
रसायनिक एजेंट के भी नहीं मिले सबूत अदालत ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने लिडोकेन से मौत की संभावना को भी खारिज कर दिया और इंसुलिन सहित किसी अन्य रासायनिक एजेंट ( chemical agent ) के निश्चित सबूत का जिक्र नहीं किया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकत है कि कोई रासायनिक एजेंट उनके मौत के कारण थे। अदालत ने दिल्ली पुलिस की चार्जशीट और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक द्वारा गठित बोर्ड की ओर से इस संबंध में कोई निश्चित राय नहीं मिलने की वजह से माना है कि अल्प्राजोलम को एक homicidal दवा नहीं माना जाता था।
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