संविधान से धर्मनिरपेक्ष-समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज
पीठ ने कहा कि प्रस्तावना 26 नवंबर, 1949 जैसी करने के लिए ही इन शब्दों को नहीं हटाया जा सकता। यह सही है कि 26 नवंबर, 1949 को संविधान देश के लोगों को सौंप दिया गया था, लेकिन इसे स्वीकार करने की तारीख आर्टिकल 368 के तहत संसद को दिए गए अधिकार को खत्म नहीं कर सकती। याचिकाओं में तर्क
पूर्व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता बलराम सिंह और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिकाओं में तर्क किया गया था कि 42वें संशोधन से मूल दृष्टिकोण को खत्म कर दिया गया। संविधान जिस तारीख को अपनाया गया, उस समय जो प्रस्तावना थी, उसे संशोधन से बदल दिया गया। अश्विनी उपाध्याय का कहना था कि उन्हें समाजवादी और धर्म निरपेक्ष शब्द से ऐतराज नहीं है। जिस तरीके से इन्हें शामिल किया गया, उस पर ऐतराज है।