Smriti Irani: पिछले चुनाव में तोड़ा गांधी परिवार का गुमान, इस बार केएल शर्मा दे रहे चुनौती, जानिए स्मृति ईरानी के सियासी सफर के बारे में
Smriti Irani Lok Sabha Elecctions 2024 Amethi: लोकसभा चुनाव 2024 में देश की सबसे चर्चित सीटों में से एक अमेठी से इस बार भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया है। पिछले लोकसभा चुनाव में ईरानी ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराया था। स्मृति ईरानी के पॉलिटिकल करियर का यह टर्निंग पॉइंट माना जाता है।
Smriti Irani Lok Sabha Elecctions 2024 Amethi: 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले जब भी अमेठी का जिक्र होता था तो लोगों के दिमाग ने सबसे पहले कांग्रेस का नाम आता था क्योंकि यह सीट कांग्रेस की गढ़ रही है। इस सीट से गांधी परिवार के कई बड़े नेता संसद पहुंच चुके हैं। संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा दी। पिछले लोकसभा चुनाव में जब स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया तो उस वक्त यह हेडलाइन बनी की आखिरकार किला फतह हो ही गया। स्मृति ने राहुल को हराने के बाद ट्विट किया था, ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता…’
जर्नलिस्ट, टीवी एक्ट्रेस और फिर राजनेता बनी स्मृति ईरानी का जीवन काफी संघर्षों भरा रहा है। उन्होंने पहली ख्याति तब प्राप्त की जब ‘सास भी कभी बहू थी’ टीवी सीरियल आई। इस टीवी शो ने स्मृति ईरानी को पहचान दी। महिलाओं के बीच इनको प्रसिद्धि मिली। 23 मार्च 1976 को दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी ने मैकडॉनल्ड्स में भी काम किया है। इसका खुलासा उन्होंने खुद किया था। उन्होंने बताया था कि मैकडॉनल्ड्स में उन्होंने झाडू-पोछा तक किया है और इसके लिए उन्हें 1500 रुपए सैलरी मिलती थी।
स्मृति ईरानी का कब शुरू हुआ राजनीतिक करियर?
स्मृति ईरानी की मां जनसंघ की सदस्य रही हैं और उनके दादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं। उन्होंने दिल्ली के चाइल्ड औक्सिलियम स्कूल से पढ़ाई की, जो कैथोलिक ननों द्वारा संचालित है। स्मृति ने 2001 में पारसी बिजनेसमैन जुबिन ईरानी से शादी की। उनका राजनीतिक करियर 2003 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने से शुरू हुआ। 2004 में उन्हें महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष बनाया गया और उसी साल उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा सीट से कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं।
2010 में स्मृति ईरानी को बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया और बाद में पार्टी की महिला शाखा, बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं। अगस्त 2011 में वह राज्यसभा के माध्यम से गुजरात से संसद पहुंचीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा गया। उन्होंने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा, लेकिन मोदी लहर के बावजूद एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से हार गईं। फिर भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया।
स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55 हजार वोटों से हराया
2014 में अमेठी से हारने के बाद भी स्मृति ईरानी ने अपने लोकसभा क्षेत्र से मुंह नहीं मोड़ा और लगातार इलाके का दौरा करती रहीं और जनसंपर्क साधने की कोशिश में लगी रहीं। लोगों को अपना बनाने के लिए, अपनापन का सन्देश देने के लिए उन्होंने यहीं जमीन खरीद कर घर बनाया। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से उन्हें राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से उतारा। इस बार उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को ढहाने में सफलता पाई।
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 17,43,515 थी, जिसमें से 54.05% वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी को 4,68,514 वोट मिले, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार राहुल गांधी ने 4,13,394 वोट हासिल किए। स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55,120 वोटों के अंतर से हराया।
2019 में चुनाव प्रचार के दौरान एक दिलचस्प वाक्या भी हुआ था। राहुल गांधी के समर्थन में जब उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा अमेठी में प्रचार कर रहीं थीं तब पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या आप बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी को चुनौती मानती हैं? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा था, Smriti Who? (कौन स्मृति)। लेकिन जैसे ही चुनाव के नतीजे आए और ईरानी को विजेता घोषित किया गया तो बीजेपी के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि आज गांधी परिवार का गुमान टूट गया।
अमेठी लोकसभा सीट का इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1967 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस के उम्मीदवार विद्याधर बाजपेयी ने जीत हासिल की थी। उन्होंने 1971 के चुनाव में भी अपने विरोधी को हराया। हालांकि, 1977 में जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस को पराजित कर दिया। 1980 में कांग्रेस ने संजय गांधी को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत दर्ज की। इस सीट पर 1980 से 1998 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1989 में राजीव गांधी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, और 1991 में सतीश शर्मा ने जीत हासिल की।
1998 में पहली बार बीजेपी ने अमेठी में जीत दर्ज की। संजय सिंह को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने कांग्रेस की जीत के सिलसिले को तोड़ दिया। हालांकि, 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सोनिया गांधी को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की। सोनिया गांधी इस सीट पर 2009 तक सांसद रहीं। इसके बाद 2009 से 2014 तक राहुल गांधी दो बार सांसद चुने गए।
इस बार चुनौती अलग
पिछले लोकसभा चुनाव में जब राहुल गांधी को स्मृति ईरानी के हाथों हार मिली उसके बाद राहुल वहां से बिल्कुल गायब हो गए। एक बार भी अमेठी नहीं गए और तो और वायनाड में उन्होंने यह तक कह दिया कि दक्षिण भारत के लोग ज्यादा स्मार्ट होते हैं। इस बार बीजेपी ने बहुत पहले अमेठी सीट के लिए स्मृति ईरानी के नाम की घोषणा कर दी थी लेकिन कांग्रेस को उम्मीदवार तय करने में काफी वक्त लग गया। काफी माथापच्ची के बाद राहुल इस सीट से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुए और किशोरी लाल शर्मा का नाम तय हुआ।
केएल शर्मा को गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता है। गांधी परिवार ने इस सीट को नाक की लड़ाई मान ली है। जिस प्रकार से प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी यहां प्रचार प्रसार कर रहे हैं उसे देखकर लग रह है कि स्मृति ईरानी के लिए लड़ाई आसान नहीं रहने वाली है।
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