दरअसल, कोरोना की वजह से लंबे समय से बंद स्कूलों को लेकर एक संसदीय समिति ने चिंता जाहिर की है। इस संसदीय समिति के अनुसार, स्कूलों को खोला जाना बच्चों के लिए जरूरी तथा फायदेमंद है। वहीं, इससे पहले आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल ऑफि मेडिकल रिसर्च के प्रमुख बलराम भार्गव भी सतर्कता और जरूरी गाइडलाइन के साथ प्राइमरी स्कूल और फिर माध्यमिक स्कूल खोले जाने का सुझाव दे चुके हैं।
बलराम भार्गव ने इसके पीछे वैज्ञानिक आधार बताते हुए कहा, छोटे बच्चे वायरस से आसानी से निपट सकते हैं। उनके फेफड़ों में वह रिसेप्टर कम होते हैं, जहां वायरस जाता है। सीरो सर्वे में भी 6 से 8 वर्ष के बच्चों में लगभग उतनी एंटीबॉडी दिखी है, जितनी अधिक उम्र के लोगों में दिखती है।
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उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश समेत कई दूसरे राज्यों में स्कूल खोल दिए गए हैं। हालांकि, सभी स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और बच्चों की उपस्थिति सिर्फ 50 प्रतिशत रखने को कहा गया है। साथ ही, अभिभावक की सहमति को अनिवार्य रूप से मानने के निर्देश भी दिए गए हैं। लेकिन स्कूलों में बच्चों की संख्या काफी अधिक हो रही है और गाइडलाइन का पालन नहीं हो पा रहा।
एक अभिभावक के बच्चे दिल्ली के बड़े स्कूल में पढ़ते है। बेटा 12वीं कक्षा में है, जबकि बेटी 9वीं कक्षा में। उनके मुताबिक, कोरोना की तीसरी लहर के बीच डर लगता है, मगर बेटे को बोर्ड की परीक्षा देनी है, इसलिए चिंता अधिक है। स्कूल में अगर गाइडलाइन का पालन होगा, तो बेटे को भेजा जा सकता है। लेकिन बेटी को स्कूल बिल्कुल नहीं भेजेंगे, क्योंकि वह अभी इतनी समझदार नहीं है कि गाइडलाइन का पालन कर सके और सोशल डिस्टेंसिंग रख सके।
यही स्थिति एक अन्य अभिभावक के साथ है। उनके मुताबिक, दो महीने पहले स्कूल से सहमति को लेकर फार्म भेजा गया था। तब हमने असहमति जता दी थी। मगर बेटे का बोर्ड एग्जाम है इस बार। ऐसे में चिंता भी लगी है कि पढ़ाई का क्या होगा। वैसे भी तीसरी लहर का खतरा बताया जा रहा है। अब उलझन में हूं क्या करूं।
कुछ अभिभावक हैं, जो गाइडलाइन का पालन करने की सहमति के बाद बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं, मगर ज्यादातर लोग अब भी ऐसे हैं, जो तीसरी लहर की आशंका के बीच अभी कुछ और इंतजार करने की बात कर रहे हैं।
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बहरहाल, देश में टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा है। मगर विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से लगाए गए अनुमानों पर गौर करें तो अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है, तो यह बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकती है। इसकी बड़ी वजह है कि दूसरी लहर का प्रभाव। इसमें सबसे ज्यादा संख्या में बच्चे संक्रमित हुए।
जुलाई महीने की शुरुआत में भी बच्चों में कोरोना वायरस के नए मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। विशेषज्ञ मानते हैं कि स्कूल खोलने से पहले अभिभावकों को बच्चों को टीका लगाने के लिए करना जरूरी है। इसके साथ ही स्कूल में आने वाले सभी स्टॉफ और अभिभावकों के लिए टीके की दोनों डोज लेना अनिवार्य होना चाहिए।
वैसे, बच्चों के लिए टीकाकरण का मामला सरकार ने कुछ हद तक हल कर दिया है। राष्ट्रीय दवा नियामक प्राधिकरण ने 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए जायडस कैडिला की तीन खुराक आरएनए वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। इसके अलावा एक अन्य टीका भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन सितंबर तक अप्रुव्ड हो सकती है। आईसीएमआर ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की निदेशक प्रिया अब्राहम की मानें तो सितंबर में ही दो से 18 साल की उम्र तक के बच्चे कोरोना का टीका लगवा सकते हैं।
एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार, बच्चों के लिए भारत बॉयोटेक, फाइजर और जायडस के टीके जल्द ही उपलब्ध होंगे। इनमें कुछ का परीक्षण अभी चल रहा है। ऐसे में जब यह वैक्सीन कब तक स्वीकृत होगी और टीकाकरण के लिए कब तक उलब्ध होगी, यह बड़ा सवाल है। सरकार फिलहाल सितंबर से अक्टूबर तक यह टीका उपलब्ध कराने की बात कह रही है। 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए टीका विभिन्न चरणों में उपलब्ध हो सकता है। माना जा रहा है कि बच्चों की पूरी आबादी को टीके की खुराक देने के लिए वैक्सीन की बीस करोड़ की खुराक की जरूरत होगी।
वहीं यूनिसेफ की रिपोर्ट पर गौर करें तो स्पष्ट होगा कि देश में 35 लाख से अधिक बच्चे हैं जो किसी भी अन्य देश के बच्चों की संख्या तुलना में अधिक हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि वर्ष 2019 में कोरोना महामारी के बाद इस संख्या में करीब डेड़ मिलियन की बढ़ोतरी हुई है। कोरोना महामारी के दौर में दुनियाभर में सबसे अधिक असुरक्षित बच्चों की संख्या करीब साढ़े तीन मिलियन भारत में ही थी।