सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सत्ताधारी एनडीए और प्रतिपक्ष इंडिया समूह के घटक दलों में भी अंतर्विरोध उभरने के संकेत मिल रहे हैं। एनडीए में शामिल लोजपा (रामविलास) ने फैसले का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की मांग की है। इंडिया समूह में शामिल लालू यादव के राजद को भी समस्या हो रही है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कोटे में कोटा और इसमें क्रीमी लेयर लागू करने के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने कहा वंचितों-पिछड़ों का आज भी विरोध हो रहा है। ऐसे में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का मामला हो ही नहीं सकता। इंडिया समूह में शामिल डीएमके ने फैसले का स्वागत किया है।
फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे
इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जातियों का वर्गीकरण करने को कहा है। यह भी कहा कि पहली पीढ़ी को मिल गया तो दूसरी पीढ़ी को नहीं मिले। क्रीमीलेयर के लिए भी कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य किया है। वर्गीकरण करने को कह दिया, इसमें कोई गलत नहीं है। एससी-एसटी आरक्षण का 2-3 प्रतिशत आबादी को लाभ मिला है, 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को इसका लाभ नहीं मिला है।-पी एल पूनिया, पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय एससी आयोग
विरोध करने वाले अपना हित देख रहे
आरक्षण का लाभ सबसे वंचित दलित और आदिवासी समुदायों के बीच वितरित करने में सरकार की विफल रही है। नरेंद्र मोदी सरकार को एससी और एसटी को उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिए काम शुरू करना चाहिए। कुछ समुदाय आरक्षण से सबसे ज्यादा लाभान्वित हो रहे हैं जबकि अन्य को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। दलितों में जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे केवल अपने समुदाय के हित को देख रहे हैं, समग्र दलितों के हित को नहीं।-विजय सोनकर शास्त्री, पूर्व अध्यक्ष राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग
एनडीए और इडिया में अंतर्विरोध के स्वर
-भाजपा के राज्यसभा सांसद और दलित चेहरे बृजलाल का मानना है कि एससी-एसटी में भी क्रीमीलेयर होना चाहिए। जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी में आ चुके हैं उनको लाभ नहीं मिलना चाहिए। -भाजपा सांसद डीके अरुणा ने कहा कि हम सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए इस फैसले का स्वागत करते हैं। अनुसूचित जातियों का 30 साल का सपना केंद्र की भाजपा सरकार की पहल से ही साकार हुआ है।
-लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के मुखिया और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा है कि जब तक छुआछूत जैसी प्रथा रहेगी तब तक सब-कैटगरी में आरक्षण और क्रीमी लेयर जैसे प्रावधान नहीं होने चाहिए।
-जदयू नेता और नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि बिहार ने पहले ही महादलित और अति-पिछड़ा वर्ग जैसी उप-श्रेणियां बनाई हैं।
-आजाद समाज पार्टी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आजाद आरक्षण के अंदर कोटा देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि यदि आप वर्गीकरण करना चाहते हैं तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी शुरुआत होनी चाहिए।
एससी-एसटीः किस राज्य में कैसी स्थिति
राजस्थानः राज्य की लिस्ट में 59 जातियां दलित हैं. इनमें सबसे बड़ा समुदाय मेघवाल है, जिनकी ज्यादातर आबादी बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और जोधपुर में बसी हैं। पूर्वी राजस्थान में बैरवा और जाटवों का दबदबा है. मीना सबसे प्रभावशाली आदिवासी समुदाय है और दर्जनों विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा असर डालते हैं। मीना सबसे प्रभावशाली आदिवासी समुदाय है और दर्जनों विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा असर डालते हैं। वहीं, भील बांसवाड़ा और डुंगरपुर जिले में बसे हैं। मध्य प्रदेशः राज्य की लगभग 16 फीसदी आबादी दलित है. दलितों में सबसे बड़ा समुदाय चमड़े का काम करने वाला समुदाय है। मालवा क्षेत्र में रहने वाला बलाई दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है. वहीं, एसटी की आबादी एमपी में 21 फीसदी है। वहीं, एसटी की आबादी एमपी में 21 फीसदी है. सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय भील है. दूसरे नंबर पर गोंड है।
छत्तीसगढ़ः राज्य की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है. 43 आदिवासी समुदायों में गोंड सबसे प्रभावशाली है और जनजातीय आबादी में इनकी 55% हिस्सेदारी है। इनके बाद कांवड़ 11% और ओरांव 10% हैं। यहां 44 जातियां दलित हैं, जिनकी राज्य की आबादी में लगभग 13 फीसदी हिस्सेदारी है. बैरवा-रैदास जैसी जातियों का प्रभाव सबसे ज्यादा है।
गुजरातः 27 जातियां दलित हैं. इनमें वांकर सबसे प्रभावशाली है, जिनकी राज्य की एससी आबादी में लगभग 35-40 फीसदी हिस्सेदारी है। वांकर के बाद दूसरा बड़ा समुदाय रोहित है, जिसकी हिस्सेदारी लगभग 25 से 30 फीसदी है। वहीं, आदिवासियों में सबसे बड़ा समुदाय भील है, जिसकी एसटी आबादी में हिस्सेदारी लगभग 43 फीसदी है। डांग, पंचमहल, भरूच, बनासकांठा और साबरकांठा में भीलों की अच्छी-खासी आबादी है। हलपटी दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है जो सूरत, नवसारी, भरूच और वलसाड़ में है।
उत्तर प्रदेशः राज्य में दलित जाटव और गैर-जाटव में बंटे हुए हैं। कुल आबादी में जाटव 12% और गैर-जाटव 10% हैं। दलितों की कुल आबादी में 56 फीसदी जाटव ही हैं। जाटवों के अलावा दलितों की बाकी उपजातियों में पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं। वहीं, गैर-जाटव दलितों में वाल्मीकि, खटीक, पासी, धोबी और कोरी समेत तमाम उपजातियां हैं।
बिहारः यहां पिछले साल ही जातिगत जनगणना हुई थी। इसके आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा आबादी में 27% पिछड़ा वर्ग, 36% अति पिछड़ा वर्ग, 19% अनुसूचित जाति और 1.68 % अनुसूचित जनजाति है। बिहार की सियासत में पहले सवर्णों का प्रभाव था, लेकिन फिर ओबीसी की सियासत शुरू हो गई। जातिगत जनगणना के बाद बनी नई ईबीसी कैटेगरी यानी अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति तेज हो गई थी। मगर अब जब कोटे के अंदर कोटा की बात होगी तो दलित और आदिवासियों की सियासत भी तेज हो सकती है।
पश्चिम बंगालः में कुल 166 लाख एससी और एसटी हैं। इनमें से 103 लाख एससी, जिनमें सबसे अधिक 38 लाख से अधिक राजवंशी, दूसरे नंबर 35 से अधिक नामशुद्र और तीसरे नंबर पर 30 लाख से अधिक बागबी हैं। इनमें से इनमें से सबसे पिछड़ी जाति बागबी हैंं। इन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है, जबकि राज्य के राजवंशी, नामशुद्र और आदिवासियों के एक वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलता है। संथाल जाति के लोगों को भी आरक्षण का कम लाभ मिलता है। बंगाल में एसटी की संख्या 62 लाख 96 हजार, जिनमें से 25 लाख संथाल हैं।
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