scriptSavitriBai Phule: पढ़ाने जाती तो लोग फेंकते थे गोबर, जानिए देश की पहली महिला शिक्षक की संघर्ष भरी कहानी | Savitribai Phule: story of struggle of country first female teacher Savitri Bai Phule | Patrika News
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SavitriBai Phule: पढ़ाने जाती तो लोग फेंकते थे गोबर, जानिए देश की पहली महिला शिक्षक की संघर्ष भरी कहानी

Savitribai Phule Jayanti 2025: प्रति वर्ष देशभर में तीन जनवरी को सावित्रीबाई फुले जयंती मनाई जाती है। इसी दिन सावित्रीबाई फुले का 1831 महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में जन्म हुआ था।

नई दिल्लीJan 03, 2025 / 01:49 pm

Shaitan Prajapat

Savitribai Phule Jayanti 2025: प्रति वर्ष देशभर में तीन जनवरी को सावित्रीबाई फुले जयंती मनाई जाती है। इसी दिन सावित्रीबाई फुले का 1831 महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में जन्म हुआ था। देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री के सम्मान में हर साल तीन जनवरी को सेलिब्रेट किया जाता है। उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया था। बताया जाता है कि वह पढ़ाने जाती तो लोग उनपर गोबर फेंका करते थे। समाज को शिक्षित बनाने की इस पहल में उनके पति ज्योतिबा फुले ने काफी मदद की। उन्होंने लोगों की परवाह किए बिना महिलाओं के लिए भी लम्बी लड़ाई लड़ी। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अहम योगदान दिया है।

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पीएम मोदी, अमित शाह, नड्डा और खड़गे ने दी श्रद्धांजलि

समाजसेविका सावित्रीबाई फुले की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत कई नेताओं ने श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि। वह महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं और शिक्षा तथा सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अग्रणी हैं। लोगों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए उनके प्रयास हमें प्रेरित करते रहते हैं।

शिक्षक सावित्री बाई फुले के संघर्ष की कहानी

3 जनवरी को सावित्री बाई फुले का जन्म दलित परिवार में हुआ था। उस समय में दलितों के साथ इच्छा व्यवहार नहीं किया था। इतना ही नहीं उनको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। सावित्रीबाई फुले ने समाज में व्यप्त इन सब कुरीतियों से लड़ा और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उस समय समाज में छुआ-छूत का बोलबाला था। उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी शिक्षा जारी रखी।

स्कूल जाते वक्त पत्थर मारते थे लोग

सावित्रीबाई ने जीवनभर खूब संघर्ष किया। ऐसा कहा जाता है कि जब वह पढ़ने के लिए स्कूल जाती थीं तो लोग उन्हें पत्थर, कूड़ा और कीचड़ फेंका करते थे। उन्होंने सभी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना किया। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दूसरी लड़कियों और दलितों के लिए शिक्षा पर करना शुरू किया था। सावित्रीबाई ने साल 1848 से लेकर 1852 के बीच 18 स्कूल खोलकर लड़कियों को शिक्षा दी।
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पढ़ने के लिए पति ने किया प्रोत्साहित

केवल 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 13 वर्ष के ज्योतिबा फुले से हुआ। उस समय बालिका शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था बल्कि यूं कहें कि नारी शिक्षा वर्जित थी तो ज्यादा ठीक होगा। सावित्रीबाई की पढ़ने लिखने में रुचि को देखकर उनके पति ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। ज्योतिबा फुले ने सावित्रीबाई को घर पर पढ़ाना शुरू किया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने पुणे के एक संस्थान से औपचारिक शिक्षक प्रशिक्षण लिया। सावित्रीबाई उस समय की रूढ़ियों और आलोचनाओं को सहन करते हुए पढ़ाई में जुटी रही।

कई सामाजिक कुरीतियों का किया विरोध

सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में बाल विवाह, छुआछूत और सती प्रथा आदि जैसी सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति के लिए अपने पति के साथ मिलकर संघर्ष किया। सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती एक विधवा ब्राह्मण युवती काशीबाई को अपने घर में आश्रय दिया। प्रसव कराया। उसके बच्चे यशवंत को अपना दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकार किया। दत्तक पुत्र यशवंत राव का पालन पोषण कर उसे डॉक्टर बनाया।
सावित्रीबाई फुले का जीवन त्याग संघर्ष और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। उन्होंने शिक्षा को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करके वंचित, गरीब और आमजन के जीवन में सुधार लाने का प्रयास किया। सावित्रीबाई फुले का मानना था कि सर्व मानव एक ही ईश्वर की संतान है। यह बात जब तक हमें समझ में नहीं आती, तब तक ईश्वर का सत्य रूप हम जान नहीं सकते। हम सभी मानव भाई-भाई हैं।

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