पहली महिला टीचर के संघर्ष की कहानी
सावित्री बाई फुले का जन्म दलित परिवार में हुआ था। उस दौर में दलितों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। सावित्रीबाई फुले ने इन सब कुरीतियों से लड़कर अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनके समाज में छुआ-छूत का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने इन सबसे हार न मानकर अपनी शिक्षा जारी रखी।
स्कूल जाते वक्त पत्थर मारते थे लोग
सावित्रीबाई को काफी संघर्ष करना पड़ा था। जब वह पढ़ने स्कूल जाती थीं तो लोग उन्हें पत्थर, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे। उन्होंने हिम्मत नहीं और और हर चुनौती का सामना किया। पढ़ने के बाद उन्होंने दूसरी लड़कियों और दलितों के लिए एजुकेशन पर काम करना किया। सावित्रीबाई ने साल 1848 से लेकर 1852 के बीच लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे।
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कई सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उठाई आवाज
9 साल की उम्र में 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले से उनकी शादी हो गई थी। उस समय वह अनपढ़ थीं। पढ़ाई में लगन देखकर उनके पति प्रभावित हुए और उनको आगे पढ़ाने का मन बनाया। सावित्रीबाई ने ना सिर्फ शिक्षा बल्कि देश में मौजूद कई कुरीतियों के खिलाफ भी आवाजा उठाई। उन्होंने छुआ-छूत, बाल-विवाह, सती प्रथा और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों का विरोध किया और इनके खिलाफ लड़ती रहीं।