पारंपरिक फंड्स से बेहतर प्रदर्शन
वेल्थ रिडिफाइन की को-फाउंडर सौम्या सरकार ने बताया, चूंकि ये फंड विशिष्ट रणनीतियों का पालन करते हैं, इसलिए इनमें बाजार के रुझान का लाभ उठाकर पारंपरिक फंड्स से बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता होती है। ये फंड पोर्टफोलियो के लिए नियमों का एक सेट तय करते हैं। इन नियमों के आधार पर कंपनियों को निवेश के लिए चुना जाता है। निवेशकों को अपने वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम उठाने की क्षमता के अनुरूप फैक्टर फंड का चयन करना चाहिए।
इन फैक्टर्स के आधार पर निवेश
लो-वोलैटिलिटी फैक्टर: जो निवेशक कम जोखिम उठाना चाहते हैं, वे कम उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर फैक्टर फंड चुन सकते हैं। इस श्रेणी के फंड वैसे स्टॉक्स में निवेश करते हैं जिनमें ब्रॉडर मार्केट के मुकाबले कम उठापटक देखने को मिलती है। बाजार में गिरावट के सामय ये फंड्स कम गिरते हैं, जिससे ये नए निवेशकों के लिए बेस्ट हैं। लो-वोलैटिलिटी फैक्टर फंड्स 3 से 5 साल की अवधि के लिए निवेश करने वालों के लिए बेहतर है। क्वालिटी फैक्टर: इस कैटेगरी के फैक्टर फंड्स उन शेयरों में निवेश करते हैं जिनकी वित्तीय स्थिति मजबूत है। यानी जो इक्विटी पर उच्च रिटर्न देते हैं यानी जिनका आरओई बेहतर और पीई कम है। साथ ही जिनका कैशफ्लो अधिक है और जिन कंपनियों पर कम कर्ज है। ये फंड मॉडरेट रिस्क लेने वालों के लिए बेहतर है। लॉन्ग टर्म में इन फंड्स ने सबसे बेहतर रिटर्न दिया है।
मोमेंटम और वैल्यू फैक्टर: आक्रामक और ग्रोथ-ओरिएंटेड निवेशक मोमेंटम फंड्स के साथ वैल्यू फैक्टरचुन सकते हैं। इन दोनों श्रेणी के फंड्स बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए इनमें कम से कम 5 से 7 साल के लिए निवेश करें। मोमेंटम उन शेयरों में निवेश करते हैं जिन्होंने हाल ही में मजबूत प्रदर्शन किया है। साथ ही यह उम्मीद है कि इनमें आगे भी तेजी जारी रहेगी। वहीं वैल्यू कम मूल्यांकन यानी लो पीई रेश्यो वाले शेयरों में निवेश करता है। ये फंड्स बुल मार्केट में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, क्योंकि ये सेक्टोरल ट्रेंड्स को जल्दी भांप लेते हैं।