हालांकि, प्रस्तावित रैली में कुछ बाधाएं भी आईं, क्योंकि कोलकाता पुलिस ने मध्य कोलकाता के एस्प्लेनेड और दक्षिण कोलकाता के रवींद्र सदन के बीच होने वाली रैली के लिए कुछ नियम जारी किए थे। कोलकाता पुलिस के मुताबिक, रैली में एक निश्चित संख्या में लोगों को इकट्ठा होने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद रैली आयोजकों ने अनुमति के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की एकल पीठ से संपर्क किया।
सोमवार को जब मामला सुनवाई के लिए आया, तो राज्य सरकार के वकील ने जोर देकर कहा कि रैली आयोजकों को रैली में भाग लेने वाले लोगों की अनुमानित संख्या बतानी चाहिए। इस प्रतिवाद में याचिकाकर्ता के वकील और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि चूंकि रैली का विषय व्यापक जनहित से जुड़ा था और इसमें आम लोग भी भाग ले रहे थे, इसलिए प्रतिभागियों की अनुमानित संख्या पहले से बताना असंभव था। न्यायमूर्ति भारद्वाज ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि प्रशासन दस लाख लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से रैली में भाग लेने और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से कैसे रोक सकता है।
न्यायमूर्ति भारद्वाज ने सवाल किया, “विरोध प्रदर्शन लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है। प्रशासन यातायात समस्या का हवाला देकर इस पर कैसे रोक लगा सकता है?” उन्होंने प्रशासन को सलाह दी कि वह भीड़ को नियंत्रित करे, जैसा कि दुर्गा पूजा के दिनों में होता है, जब लाखों लोग पंडालों में दर्शन के लिए शहर की सड़कों पर निकलते हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या कोई दुर्गा पूजा आयोजक अपने पंडालों में आने वाले आगंतुकों की संख्या का पहले से अनुमान लगा सकता है।