ब्रिटिश राजघराने का अवार्ड ठुकराया
रतन टाटा अपने पालतू जर्मन शेफर्ड डॉग टीटो से बहुत प्यार करते थे। टाटा की वसीयत (Will) में उनके जर्मन शेफर्ड पालतू श्वान टीटो का विशेष उल्लेख है। वसीयत के अनुसार टीटो की देखभाल उनके पुराने रसोइए राजन शॉ करेंगे। वे जानवरों से करीबी थे इस बात का अंदाजा इस एग्जामपल से समझ सकते हो। ब्रिटिश राजघराने ने वर्ष 2018 में रतन टाटा को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड देने का मन बनाया। रतन टाटा ने अपने पालतू टीटो की बिगड़ी तबीयत के चलते इस अवार्ड को ठुकरा दिया।‘सॉरी, मैं नहीं आ सकता…’
एक इंटरव्यू में Ratan Tata के दोस्ट सुहैल सेठ ने इस बात का खुलासा किया। उन्होंने बताया, ‘कुछ साल पहले रतन टाटा को बकिंघम पैलेस में प्रिंस ऑफ वेल्स से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिलना था। मैं लंदन पहुंच गया था। सारी तैयारियां हो चुकी थीं। लास्ट टाइम रतन टाटा के पालतू कुत्ते की तबीयत बिगड़ गई। टाटा ने कॉल करके बोला कि सॉरी, मैं नहीं आ सकता। मुझे उसकी देखभाल करनी होगी। वह नहीं आ सके।’माधो राव सिंधिया का पशु प्रेम
रतन टाटा अपने पेट डॉग से जैसा प्यार करते थे ठीक वैसा ही लगाव ग्वालियर राजघराने के महाराजा माधो राव सिंधिया का अपने पालतू श्वान से था। महाराजा अपने पालतू हर जगह साथ लेकर जाते थे। महाराजा माधो राव जब साल 1925 में पेरिस में बीमार हुए तो उन्हें सबसे ज्यादा चिंता अपने पालतू डॉग हुस्सू की हुई। महाराज ने अपनी सबसे वरिष्ठ महारानी चिनकू राजे को बुलवाया और कहा कि मैं मर जाऊं तो हुस्सू की देखभाल में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। माधो राव ने 5 जून 1925 को निधन से पहले अपनी वसीयत लिखी। इसमें खासतौर से अपने पालतू कुत्ते हुस्सू का जिक्र किया और उसकी देखभाल के लिए भारी-भरकम रकम छोड़कर गए।