पहले जान लिजिए की क्या है विवाद? बता दें कि 15 अगस्त के मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लाल किले में आयोजित कार्यक्रम में पहली पंक्ति में जगह नहीं दी गई थी। इस पर कांग्रेस के महासचिव और लोकसभा सांसद केसी वेणुगोपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘मोदी जी, अब समय आ गया है कि आप 4 जून के बाद की नई वास्तविकता को समझें। जिस अहंकार के साथ आपने स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को आखिरी पंक्तियों में धकेल दिया, उससे पता चलता है कि आपने कोई सबक नहीं लिया है।’
कैसे तय होता कौन कहां बैठेगा? आपको बता दें कि राष्ट्रीय कार्यक्रमों के आयोजन और इस तरह के आयोजन में बैठने की व्यवस्था का काम रक्षा मंत्रालय का होता है। हर कार्यक्रम में वरिष्ठता के आधार पर सीट अरेंजमेंट किया जाता है। वरिष्ठता का फैसला गृह मंत्रालय की टेबल ऑफ प्रेसेडेंस (Tables Of Precedence) लिस्ट के आधार पर किया जाता है। इसके आधार पर ही प्रोटोकॉल तय होता है और राजनेताओं, अधिकारियों की वरिष्ठता तय होती है। टेबल ऑफ प्रेसेडेंस के अनुसार, केंद्रीय मंत्रियों और नेता प्रतिपक्ष को बराबर का दर्जा दिया गया है।
सरकार ने आरोपों का किया खंडन राहुल गांधी के पांचवी पंक्ति में बैठने के बाद उपजे विवाद पर रक्षा मंत्रालय ने सफाई देते हुए बताया कि लाल किले में होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह की सारी जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की होती है। रक्षा मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि आगे की पंक्तियों में ओलंपिक मेडल विजेताओं के बैठने का इंतजाम किया गया था, इसलिए राहुल गांधी को पीछे बैठाया गया। प्रोटोकॉल के मुताबिक, विपक्ष के नेता को आगे की पंक्ति में बैठाया जाता है। वहीं, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को भी पांचवीं पंक्ति में जगह दी गई थी। हालांकि, वो आए नहीं थे।
भारत में ऐसे तय होता है प्रोटोकॉल भारत में किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सरकार की तरफ से सीटींग अरेंजेमेंट जारी किया जाता है। आमतौर पर किसी भी सरकारी कार्यक्रम में पहली सीट भारत के राष्ट्रपति, दूसरी सीट उपराष्ट्रपति, तीसरी सीट भारत के प्रधानमंत्री, चौथी सीट राज्यों के राज्यपालों (अपने राज्य में पहली), पांचवी सीट भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों, भारत के पूर्व उपराष्ट्रपतियों, छठवीं सीट भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा के अध्यक्ष, सांतवी सीट उपप्रधानमंत्री, संघ के कैबिनेट मंत्री, राज्यसभा एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के योजना आयोग का उपाध्यक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री (अपने राज्य में), भारत रत्न विजेताओं, आठवीं भारत के लिए मान्यता प्राप्त राष्ट्रमंडल के राजदूतों, असाधारण और पूर्णाधिकारी और उच्चायुक्त, राज्यों के राज्यपाल (अपने राज्य के बाहर), राज्यों के मुख्यमंत्री (अपने राज्य के बाहर), उपराज्यपाल (अपने राज्यक्षेत्र में), नौंवी सीट भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, भारत का मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दसवीं सीट राज्यसभा का उपसभापति, लोकसभा का उपाध्यक्ष, योजना आयोग के सदस्य, राज्यों के उपमुख्यमंत्री, संघ के राज्यमंत्री (और रक्षा मंत्रालय में रक्षा मामलों के लिए कोई अन्य मंत्री) के लिए रिजर्व होता है।
कितना ताकतवर होता है नेता प्रतिपक्ष? नेता प्रतिपक्ष का पद कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है। इस पद पर जो भी व्यक्ति होता है, वो संसद में सिर्फ विपक्ष की आवाज ही नहीं होता, बल्कि उसके कई विशेषाधिकार और शक्तियां भी होती हैं। विपक्ष का नेता पब्लिक अकाउंट, पब्लिक अंडरटेकिंग और एस्टिमेट पर बनी कमेटियों का हिस्सा होता है। साथ ही संयुक्त संसदीय समितियों और चयन समितियों में भी अहम भूमिका होती है। ये चयन समितियां सीबीआई, ईडी, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) जैसी एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्तियां करती हैं।
नेता प्रतिपक्ष को मिलती हैं ये सुविधाएं विपक्ष के नेता को भी वही सैलरी, भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं, जो केंद्र सरकार के मंत्री को मिलती है। सांसदों को मिलने वाली सैलरी और भत्ते 1954 के कानून के तहत तय होते हैं। आखिरी बार इस कानून में 2022 में संशोधन हुआ था। इसके मुताबिक, लोकसभा के हर सदस्य को हर महीने 1 लाख रुपये की बेसिक सैलरी मिलती है। इसके साथ ही 70 हजार रुपये निर्वाचन भत्ता और 60 हजार रुपये ऑफिस खर्च के लिए अलग से मिलते हैं। इसके अलावा जब संसद का सत्र चलता है तो दो हजार रुपये का डेली अलाउंस भी मिलता है।