800 करोड़ लोगों का पेट अकेले पृथ्वी नहीं भर सकती
हम प्रति व्यक्ति संसाधनों का जितना उपभोग करते हैं उतने के लिए ही पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन मौजूद नहीं है। तुम और लोगों के लिए संसाधन कहाँ से ला दोगे? एक घर हो जिसमें दस ही लोगों के खाने की गुंजाइश हो और उसमें चालीस लोग पहले से हैं और तुम चाह रहे हो चालीस को सत्तर बना दें तो इसमें अब क्या तुमको अध्यात्म समझाया जाये। यह बात तो सीधे-सीधे गणित की और आँकड़ों की है। एक साधारण घर हो उसमें तो बाहर से कहीं से उधार ला सकते हो। अगर उस घर का नाम ही ‘ग्रह’ हो तो? पृथ्वी पर अनाज बाहर से कहाँ से लेकर आओगे? पृथ्वी पर जगह और संसाधन बाहर से कहाँ से लेकर के आओगे? कोई दूसरी पृथ्वी तो नहीं है न। एक ही पृथ्वी है और वो जितना दे सकती है वो पर्याप्त नहीं है इन 800 करोड़ लोगों के लिए ही। और ज़्यादा लोग कहाँ से लाओगे? समझ में आ रही है बात।खुद भी भोगो, भोगने के लिए और लोग पैदा करो… कैसे चलेगा?
और यह भी नहीं है कि यह जो दुनिया के 800 करोड़ लोग हैं अगर यह न बढ़े तो भी पर्याप्त हो जाएगा, तो भी नहीं होगा। क्योंकि हर व्यक्ति प्रगति चाहता है। विकास और तरक्की का अर्थ क्या है? उपभोग बढ़ाना। यही तो! और जो हम भोग बढ़ाते हैं, दो तरीके से बढ़ाते हैं। एक यह कि जितने हैं वो और ज़्यादा भोगे और दूसरा, भोगने के लिए और नए-नए लोग भी वो पैदा करें जो भोग रहे हैं। जो हमारा भोग है उसके दो पहलू हैं- ख़ुद भी ज़्यादा भोगो और भोगने के लिए अपने घर में और लोग पैदा कर दो, जो और भोगे। यह भी पढ़े– Kabir Das Birtday: तुम्हारा रोना स्वार्थ, कबीर का रोना करुणा की अभिव्यक्ति है
हर बच्चा लाखों जीवों की लाश पर पैदा हो रहा है
आप कितने यूनिट बिजली की खपत करते हैं आज? बिजली के बिल को कोई देखता है ठीक से अपने? जिन्होंने देखा होगा उन्हें पता होगा। और बताइएगा बीस साल पहले कितने यूनिट का बिल आता था आपके घर में। एक बटा दस। एक आम परिवार ने अपनी बिजली की खपत दस गुना बढ़ा ली है, वो बिजली कहाँ से आएगी और दस गुना पर आप रुक नहीं गए हो, अभी आपको और बढ़ानी है। औसत भारतीय, औसत जर्मन या अमेरिकी की अपेक्षा बिजली का एक बटा दस या एक बटा बीस इस्तेमाल करता है। अभी तो भारतीय और बढ़ाएगा और वो सिर्फ़ बिजली की अपनी प्रति व्यक्ति खपत ही नहीं बढ़ाएगा, उन व्यक्तियों की संख्या भी बढ़ाएगा जो खपत करेंगे। बिजली आती है कोयले से। कोयला कहाँ है? और पृथ्वी का भी जो कोयला है अगर वो तुम जलाओगे तो उससे क्या निकलता है -कार्बन। यह जो बच्चा पैदा करते हो, यह अपने साथ सड़क लेकर आता है, स्कूल लेकर के आता है, हवा लेकर के आता है, अन्न लेकर के आता है, घर ले करके आता है, गाड़ी लेकर के आता है! एक बच्चा जब पैदा होता है वो अपने जीवन में अब किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल करेगा। पृथ्वी के पास संसाधन नहीं है कार बनाने के और न सड़कों पर जगह है, न पृथ्वी पर जगह है सड़क बनाने की क्योंकि सड़क बन रही है और अब तो जंगल काटकर बन रही है। तो जो बच्चा पैदा हो रहा है वो वास्तव में जंगल काटकर पैदा हो रहा है। जो बच्चा पैदा हो रहा है वो लाखों जीवों की लाश पर पैदा होता है।बच्चा पैदा करके आपका घर भरता है लेकिन उधर तो…
आपको पता है! आप जो खाते हो, उसकी खेती करने के लिए जमीन है नहीं तो वो कैसे पैदा होता है? जंगल काटे जाते हैं ताकि खेत बनाए जा सके और जब जंगल कटता है तो सिर्फ़ पेड़ नहीं कटता, उस पेड़ पर जितने पशु-पक्षी जितनी प्रजातियाँ आश्रित थीं, वो सब खत्म होती जाती हैं। आपका घर भर गया उनका घर उजड़ गया। यह हम विचार ही नहीं करते। और आप जब बच्चा पैदा करते हो तो आप साथ में यह भी चाहते हो कि आप उसके लिए ऊँची से ऊँची तरह की लाइफ़स्टाइल की व्यवस्था कर सको, जिसका अर्थ होता है। भोग। सिर्फ़ एक जगह है जहाँ से अब भोग आता है। वो है पृथ्वी को नष्ट करके।अमेरिका से भोग में लेंगे होड़ तो हमें 17 पृथ्वी चाहिए होगी
अमेरिका का औसत नागरिक जितने संसाधनों का इस्तेमाल करता है अगर दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति उतने संसाधनों का इस्तेमाल करने लगे तो हमें 17 पृथ्वी चाहिए होगी। अमेरिका वाले भी अपना भोग अभी और बढ़ा रहे हैं। तुम इतनी पृथ्वी कहाँ से लाओगे? सीधा गणित है। बच्चा तो पैदा कर दिया, उसके लिए स्कूल भी तो बनाओ। एक बार कल्पना करो एक बच्चा अगर 80 साल जीएगा तो वो अस्सी साल किन-किन चीज़ों का भोग करेगा? वो चीज़ें कहाँ से आएँगी? पैदा करो उनको साथ में। माँ-बाप के ऊपर यह नियम लगाया जाना चाहिए। तुम यह सब चीज़ें भी पैदा करके दो।बच्चा आपने पैदा किया, ट्रैफिक जाम में तो मैं फंस गया
कोई व्यक्ति संतान पैदा कर रहा है तो यह उसका निजी मसला नहीं हो सकता। आपने इतनी संतानें पैदा कर दीं, वो ट्रैफिक-जाम लगा रही हैं। बताइए यह आपका व्यक्तिगत मसला कैसे है, ट्रैफिक जाम में तो मैं फँस गया। आप कहते हैं, ‘साहब, यह तो हमारा मसला है, हम कुछ भी करें।’ आप कुछ भी करिए अपने घर के अंदर करिए फिर वो बच्चा कभी घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और उसके जीवन भर में जितनी चीज़ें लगनी है वो भी फिर घर के अंदर ही पैदा होने चाहिए, घर के बाहर से नहीं आनी चाहिए। यह आपके घर का मसला नहीं है।आधुनिक समय में जनसंख्या बढ़ाना महा-अपराध है
आज के समय में अनियंत्रित रूप से जनसंख्या बढ़ाना पूरी मानवजाति और जितनी भी समस्त पशु-पक्षियों की, पौधों की, पेड़ों की जातियाँ हैं सबके प्रति महापराध है। नदी के प्रति आप अपराध कर रहे हो बच्चा पैदा करके क्योंकि उस बच्चे के लिए पानी कहाँ से आना है? और नदियों की जो दुर्दशा हुई है, क्या लगता है कि इतनी जनसंख्या के बिना हो सकती थी? हमारे घर की खुशियाँ नदी की बर्बादी बनती हैं, यह बात हमें समझ में ही नहीं आ रही। जनसंख्या नियंत्रण का एक समुचित कानून, किसी उल्टे-पुल्टे उद्देश्य से नहीं, बिलकुल सही, साफ़, सच्चे उद्देश्य से बनाया गया कानून भारत की, पूरी दुनिया की आज पहली ज़रूरत है। और कोई यह न बोले- पहली बात कि यह मेरे घर का मसला है, इसमें सरकार को दख़ल देने की क्या ज़रूरत है, यह तुम्हारे घर का मसला नहीं है।स्त्री मिल जाती है तो उसे हर समय गर्भवती बनाए रखते हो
आप अपने घर में जनरेटर चलाओ। मान लो वो जो पुराने क़िस्म के डीजल सेट होते थे और वो खूब धुँआ फेंक रहा है। क्या यह आपका व्यक्तिगत मसला है? बच्चा पैदा करना ऐसा ही है। वो डीजल सेट रखा तो तुम्हारे घर में है पर उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है, वो तुम्हारा निजी मसला कैसे हो सकता है। यह चूँकि तुम्हारा निजी मसला नहीं है इसलिए दूसरों को दख़ल देने का हक़ भी पूरा है। और दूसरी बात कोई यह न बोले कि यह सब कुछ जो होता है यह भगवान की मर्जी से होता है। ऊपर वाले की देन नहीं है औलादें। किसी ऊपर वाले ने औलादें नहीं भेजी हैं। तुम्हारी वहशत की पैदाइश है औलादें। वहशी दरिंदे की तरह तुम दिन-रात टूटे रहते हो क्योंकि तुम्हारे पास जीने के लिए कोई सार्थक वजह तो है नहीं, तो एक ही काम है- मनोरंजन। स्त्री-जाति का दमन करते हो, घर में एक स्त्री मिल जाती है, उसको हर समय गर्भवती करे रहते हो। एक के बाद एक औलादें पैदा किये जा रहे हो फिर कहते हो यह तो ऊपर वाले की बरकत है। बेवकूफी की बात, बेवकूफी की भी बेईमानी की भी।बच्चा पैदा करने का संबंध ऊपर वाले से कतई नहीं है
न यह निजी मसला है न इसका ऊपर वाले से कोई लेना-देना है। ज़िम्मेदारी तुम्हारी है और मसला सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक है। ऊपर वाले की ज़िम्मेदारी नहीं है। व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है और किसके प्रति ज़िम्मेदारी? पूरी दुनिया के प्रति ज़िम्मेदारी है। तो वो ज़िम्मेदारी आपको स्वीकार करनी पड़ेगी कि यह जो आप कर रहे हैं यह आप पूरी दुनिया के प्रति एक गुनाह कर रहे हैं। यदि लगता भी हो कि संतान सुख भोगना ही है तो एक बच्चा, अधिक से अधिक एक। और अगर थोड़ा संयम बरत सकते हैं, जीवन को चेतना की एक ऊँचाई दे सकते हैं तो एक बच्चा भी आवश्यक है नहीं। दूसरे पर तो ज़बरदस्त अर्थदंड होना चाहिए और तीसरे पर तो जेल ही।औसत उम्र बढ़ना भी दुख का कारण बन रही है
एक बड़ी दुर्घटना घटी है। भारत जैसे देशों की जो आबादी है वो और ज़्यादा और ज़्यादा युवा होती जा रही है। भारत की जो औसत उम्र है वो प्रतिवर्ष कम होती जा रही है, मतलब जो जीवित भारतीय हैं। ‘आयु’ नहीं कह रहा हूँ- ‘उम्र’। बात समझ रहे हो। तो ज़्यादा लोग हैं जो अब पंद्रह से पच्चीस वाली दरमियान में आते हैं। यही लोग है। अब यही लोग हैं फिर जिनके पास पैसा भी है, कैसे? इसलिए नहीं कि ख़ुद कमाते हैं। इसलिए क्योंकि माँ-बाप के इकलौते लड़के हैं तो माँ-बाप का सारा पैसा इनके हाथ में है, भले ही ख़ुद कुछ न कमाते हों, बेरोजगार हों। यह जो इतनी बेरोज़गारी भारत में बताई जा रही है, आप जानते हो इससे कहीं ज़्यादा है यह बेरोज़गारी। भारत में प्रछन्न रोज़गार है बहुत सारा। भारत का जो अनइंप्लॉयमेंट डाटा है, आप उसको स्टडी करें तो बहुत बातें आपको जानने को मिलेगी। बहुत सारे लोग हैं जिनको रोज़गार उपलब्ध है वो रोज़गार ले नहीं रहे। वो कह रहे हैं, नौकरी नहीं करना। इससे ज़्यादा पैसे तो मुझे पॉकेटमनी में मिल जाते हैं और वो नौकरी नहीं करता। वो फिर बेरोज़गारों में गिने जाते हैं। और बहुत सारे ऐसे हैं जो अपने आप को रोज़गार बताते हैं पर वो हिडेन अनइंप्लॉयमेंट हैं।
2050 में इतनी हो जाएगी भारत की जनसंख्या
सँयुक्त राष्ट्र संघ के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 9 जुलाई2024 को भारत की कुल आबादी 1442080355 है । जो कि वर्ष 2025 में 1454606724, वर्ष 2030 में 1514994080, वर्ष 2035 में 1567802259, वर्ष 2040 में 1611676333, वर्ष 2045 में164586318, वर्ष 2050 में 1670490596 होने का अनुमान है। (लेखक वेदांत मर्मज्ञ हैं और पूर्व सिविल सेवा अधिकारी रह चुके हैं। आचार्य प्रशांत प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)