गुजरात हाईकोर्ट ने सीआईसी के आदेश पर लगाई थी रोक
अप्रैल 2016 में तत्कालीन सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्राप्त डिग्री के बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जानकारी प्रदान करें। जुलाई 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। नरेंद्र मोदी ने चुनाव आयोग में दिए हलफनामे में बताया था कि, उन्होंने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए किया था और 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री ली थी।
अप्रैल 2016 में तत्कालीन सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्राप्त डिग्री के बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जानकारी प्रदान करें। जुलाई 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। नरेंद्र मोदी ने चुनाव आयोग में दिए हलफनामे में बताया था कि, उन्होंने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए किया था और 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री ली थी।
केजरीवाल का सवाल, क्या देश को जानने का अधिकार नहीं है कि उनके पीएम कितना पढ़े हैं
प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री दिखाने की मांग वाली याचिका गुजरात हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर ट्वीट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह सवाल किया कि, क्या देश को ये जानने का भी अधिकार नहीं है कि उनके पीएम कितना पढ़े हैं। कोर्ट में इन्होंने डिग्री दिखाए जाने का ज़बरदस्त विरोध किया। क्यों, और उनकी डिग्री देखने की मांग करने वालों पर जुर्माना लगा दिया जाएगा। ये क्या हो रहा है। अनपढ़ या कम पढ़े लिखे च्ड देश के लिए बेहद ख़तरनाक हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री दिखाने की मांग वाली याचिका गुजरात हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर ट्वीट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह सवाल किया कि, क्या देश को ये जानने का भी अधिकार नहीं है कि उनके पीएम कितना पढ़े हैं। कोर्ट में इन्होंने डिग्री दिखाए जाने का ज़बरदस्त विरोध किया। क्यों, और उनकी डिग्री देखने की मांग करने वालों पर जुर्माना लगा दिया जाएगा। ये क्या हो रहा है। अनपढ़ या कम पढ़े लिखे च्ड देश के लिए बेहद ख़तरनाक हैं।
लोकतंत्र में यह मायने नहीं रखता पदधारक डॉक्टरेट या अनपढ़ – तुषार मेहता
इस याचिका पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले महीने हुई सुनवाई में विश्वविद्यालय की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि जब छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। तब भी विश्वविद्यालय को जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया था, लोकतंत्र में यह मायने नहीं रखता कि पदधारक डॉक्टरेट या अनपढ़ है। साथ ही इस मुद्दे में कोई जनहित शामिल नहीं है। ऐसे में उनकी गोपनीयता भी प्रभावित होती है।
इस याचिका पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले महीने हुई सुनवाई में विश्वविद्यालय की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि जब छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। तब भी विश्वविद्यालय को जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया था, लोकतंत्र में यह मायने नहीं रखता कि पदधारक डॉक्टरेट या अनपढ़ है। साथ ही इस मुद्दे में कोई जनहित शामिल नहीं है। ऐसे में उनकी गोपनीयता भी प्रभावित होती है।