‘सेम सेक्स मैरिज’ पर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने चार अलग-अलग फैसलों में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (एसएमए) के प्रावधानों को रद्द करने या उसमें फेरबदल करने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि विवाह करने का कोई भी अधिकार नहीं है और समलैंगिक जोड़ा संविधान के तहत इसे मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की प्रार्थना को खारिज करते हुए पीठ ने इस तरह के मिलन को वैध बनाने के लिए कानून में बदलाव करने का काम संसद पर छोड़ दिया था। यह भी पढें- Delhi Election 2025: नई दिल्ली विधानसभा सीट पर हुआ ‘वोटों का घोटाला’, AAP ने BJP पर लगाया ये बड़ा आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं
गुरुवार को फैसले की समीक्षा के लिए याचिकाओं को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, हमने पूर्व न्यायाधीश एस रवींद्र भट द्वारा दिए गए निर्णयों को ध्यान से पढ़ा है, जो उन्होंने स्वयं और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के लिए कहा है, साथ ही हम में से एक पूर्व न्यायाधीश नरसिम्हा द्वारा व्यक्त की गई सहमति की राय जो बहुमत का मत है। हमें रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं दिखती। हम आगे पाते हैं कि दोनों निर्णयों में व्यक्त किया गया दृष्टिकोण कानून के अनुसार है और इस तरह, कोई हस्तक्षेप उचित नहीं है।गोद लेने के अधिकार पर विचार
शीर्ष अदालत ने पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि अक्टूबर 2023 के फैसले में किसी भी प्रकार के बदलाव या हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा कि कानून समलैंगिक जोड़ों को बच्चों को गोद लेने का अधिकार नहीं देता। यह अधिकार विवाह के साथ स्वाभाविक रूप से नहीं जुड़ा है। समलैंगिक जोड़े विवाह के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते। अदालत ने माना कि विवाह का अधिकार बिना शर्त नहीं होता और यह संसद के अधिकार क्षेत्र का विषय है।Hindi News / National News / Same Sex Marriage के फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाएं खारिज, Supreme Court ने कहा- फैसले में कोई खामी नहीं