बचपन में ही रवींद्रनाथ टैगोर का रुझान कविता और कहानी की ओर था। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी. 1877 में वह 16 साल के थे जब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। गुरुदेव को उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। टैगोर को ‘नाइटहुड’ की उपाधि भी मिली हुई थी. जिसे टैगोर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) के बाद अपनी लौटा दिया था। 1921 में उन्होंने ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी। जिसे ‘विश्व भारती’ यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
वैसे तो टैगोर ने कई रचनाए लिखीं, लेकिन जब बांग्ला में उन्होंने ‘जन गन मन’ लिखा तो वह काफी पॉपुलर हुआ था। जो आगे चलकर भारत का राष्ट्रगान बन गया। वहीं, ‘आमान सोनार बंग्ला’ गुरुदेव ने ही लिखी थी, जो बाद में बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना। इसकी रचना उन्होंने 1905 में किया था। वहीं, टैगोर ने जब शांति निकेतन में विश्व भारती, यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो श्रीलंका के आनंद समरकून यहां पढ़ने आए थे। छह महीने बाद वह अपने देश लौट गए। यहां से लौटने के बाद उन्होंने ‘श्रीलंका माता’ की रचना की। यही रचना बाद में श्रीलंका का राष्ट्रगान बना।
बताया जाता है कि आनंद समाराकून ने 1940 में ‘नमो नमो माता’ की रचना की थी। यह काफी हद तक रविन्द्र नाथ टैगोर से प्रभावित थी। कुछ जानकारों का कहना है कि टैगोर ने इसका संगीत तैयार किया था। जबकि, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि टैगोर की यह रचना थी। 1951 में यह गीत श्रीलंका का आधिकारिक राष्ट्रगान बन गया। वहीं, इस पर जब विवाद शुरू हुआ तो 1961 में ‘नमो नमो मात’ की जगह ‘श्रीलंका माता’ कर दिया गया। सीधे तौर पर कहें तो टैगोर द्वारा 1938 में लिखे इस गीत को सिंहली में अनुवादित कर वहां का राष्ट्रगान बना दिया गया।
कहा जाता है की जब सरकार ने राष्ट्रगान को ‘नमो नमो मात’ की जगह ‘श्रीलंका माता’ नाम दिया, तब सरकार द्वारा किए गए इस संशोधन का आनंद ने विरोध किया। गुस्से में आकर श्रीलंका के इस राष्ट्रगीत के रचयिता और टैगोर के शिष्य आनंदा समाराकून ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में इसकी वजह भी लिखकर गए, लेकिन सरकार ने बदलाव फिर भी नहीं हटाया।