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मणिपुर Ground 0 Report: ‘छोटे बच्चों रोने ना लगें, उनका मुंह दबाकर हम भागे’

Manipur Violence: राहत कैंप में रह रहे ये लोग किस तरह अपनी जान बाचकर यहां तक पहुंचे हैं, वो जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

Aug 01, 2023 / 07:52 pm

Vikash Singh

इंफाल के राहत कैंप में मौजूद औरतें घर को याद कर रो पड़ीं।

manipur violence मणिपुर की राजधानी इंफाल के बिल्कुल पश्चिम में बसा गांव है-सिंगदा। गांव में नीचे की तरफ मैतई समुदाय की बस्ती है तो पहाड़ पर कुकी लोग रहते हैं। मई के महीने से पहले ये सब साथ में रहते थे लेकिन अब स्थिति ये है कि दोनों समुदाय के लोगों के बीच बंकर बने हुए हैं। पत्रिका रिपोर्टर विकास ने सिंगदा गांव और इंफाल के ट्रेड एक्सपो सेंटर में बनाए गए मैतई लोगों के रिलीफ कैंप में लोगों से बात की है। 3 मई को कैसे हिंसा शुरू हुई और अब क्या हालात हैं, ये लोग क्या चाहते हैं, इनकी ही जुबानी जानिए।

सिंगदा गांव के पूर्व सरपंच एम बॉबी सिंह से इस पूरे हालात पर सवाल होता है तो वो अपने जवाब में कहते हैं, “मौजूदा बीजेपी की सरकार और सीएम बीरेन सिंह ड्रग्स की खेती के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। कुकी समुदाय के मिलिटेंट इसी बात ये खफा है क्योंकि उनकी आमदनी इसी से आ रही थी। 3 मई से शुरू हुई हिंसा की बात की जाए तो इसमें कुकी लोगों ने ही शुरुआत की। उन्होंने रैली बुलाई तो इसे शांतिपूर्वक रखना था। रैली में एके-47 जैसे हथियार लहराए गए। कुकी लोगों ने हमारे ऊपर हमले किए। इसके बाद तो हालात बिगड़ते चले गए।”
https://youtu.be/3WKW10ZYOoY

ऋषिकेश को हमले में लगी गोलियां
सिंगदागांव के ही ऋषिकेश को 24 मई को कई गोलियां लगी थीं। उनकी टांग में 3 गोलियां धंसी हुई हैं। ऋषिकेश कहते हैं, “24 मई की रात में वो गांव की सुरक्षा में थे, जब उन पर हमला हुआ। कुकी समुदाय के लोगों ने हमला किया। अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। मुझे एक महीने से ज्यादा अस्पताल में रहना पड़ा। अब भी तीन गोलियां मेरी टांग में हैं, डॉक्टर का कहना है कि ऑपरेशन से टांग में इंफेक्शन फैल सकता है। अब मैं कैसे अपने परिवार को पालूंगा, ये सबसे बड़ा सवाल मेरे सामने है।”

गोली लगने से घायल हुए सिंगदा के ऋषिकेश IMAGE CREDIT:

इंफाल के ट्रेड एक्सपो सेटंर में बनाए गए रिलीफ कैंप में करीब 500 मैतई समुदाय के लोग रह रहे हैं। यहां जमीन पर बैठी अंजलि कहती हैं, “3 मई को बंद और रैली के चलते तनाव तो था लेकिन ऐसा नहीं सोचा था कि इतना बड़ा कुछ होना वाला है। रात को 10 बजे के बाद सब काम खत्म कर जब खाना खाने जा रहे थे तभी आवाजें सुनीं। कुछ लोग चीखे तो हम बाहर निकले, देखा तो गाड़ियां और घर जल रहे हैं। हम किसी तरह बच्चों के साथ भागे। बाद में पुलिस की गाड़ियां आईं और हमें यहां रिलीफ कैंप में लेकर आ गईं।”


‘इससे अच्छा तो हम तभी मर जाते’
अंजलि पीछे छूटे अपने घर और प्रोपर्टी के तबाह हो जाने की बात याद करती हैं तो रो पड़ती हैं। रोते हुए कहती हैं, ”इससे अच्छा तो हम 3 मई को ही मर जाते। जहां जन्म-जन्म से रह रहे थे, वहां से रातोंरात निकल जाना पड़े तो क्या ही करें। आज भी मरने का ख्याल बार-बार मन में आता है लेकिन ना जिया जा रहा है ना मर पा रहे हैं। मैं देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे लोगों से कहना चाहती हूं कि हमारी मदद कीजिए।”

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पत्रिका रिपोर्टर विकास से बात करती हिंसा में घर छोड़ने को मजबूर हुईं अंजलि IMAGE CREDIT:

मुझे तो लगता है ये कोई बुरा सपना है’
कैंप में रहने वाली सालाम 3 मई की रात को याद करते हुए कहती हैं, ”ऐसा खौफ कि अब भी लगता है कोई बुरा सपना देख रही हूं। जब अपना घर छोड़कर हम रात को निकले तो बच्चे रोने लगे। बच्चों की आवाज सुन हमला ना हो जाए इसलिए उनका मुंह दबा लिया। एक जगह तो हथियारबंद लोग सामने मिल गए, जिसके बाद कुकी की भाषा में बात करके मैंने जान बचाई। मुझे नहीं पता कि किसकी वजह से ये सब हो रहा है, मैं तो सरकार से रिक्वेस्ट करना चाहती हूं कि हमें कोई चीनी बुलाए, या कुछ भी बुलाए लेकिन हम इंडियन हैं। इससे भी ज्यादा हम इंसान हैं। ऐसे में सरकार कम से कम इंसानियत के नाते हमारी मदद करे।”

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कैंप में ही रहे रहे सनातम पुलिस और सुरक्षा बलों से भी खफा नजर आए। उन्होंने कहा, ”बहुत सारी हिंसक घटनाएं सुरक्षाबलों की आंखों के सामने घटीं लेकिन उन्होंने सख्ती नहीं दिखाई। भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि अगर उनको उनका घर ना मिला तो फिर वो भी हथियार उठा लेंगे। उनके सामने अब जीने-मरने का सवाल आ गया है।”

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