मणिपुर उच्च न्यायलय के न्यायाधीश गोलमेई की पीठ ने फैसले को पलटते हुए कहा कि यह उच्चतम न्यायालय के दिए गए फैसले के विपरीत है। उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद मामले में साफ कहा है कि अदालतें अनुसचित जनजाति की सूची में संशोधन या बदलाव नहीं कर सकती। इसकी वजह से अब पुराने फैसले में संशोधन किया जा रहा है। पिछले साल के पैराग्राफ 17(3) के तहत दिए गए निर्देशों को डिलीट किया जाना चाहिए इसलिए इसे खत्म कर दिया गया है।
मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्देश जारी किया था। राज्य सरकार ने आदेश दिया था कि वो मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विचार करे। इसके बाद ही पूरा राज्य जलने लगा। प्रदेश में जातीय हिंसा भड़क गई। इसके बाद पुनर्विचार याचिका दायर की गई तो फिर न्यायालय ने अपना फैसला बदल दिया।
करीब एक साल से मणिपुर जल रहा है। न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था। इसके बाद मैतेई और कुकी में झड़प हो गई। पुलिस ने आंसू गैस के गोल दागे औरफिर विरोध की इस आग ने देखते देखते पूरे मणिपुर को चपेट में ले लिया।
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी के साथ गैर-जनजाति समुदाय है। वहीं कुकी और नागा आबादी 40 फीसदी के आसापास है। बड़ी आबादी होने के बाद भी मैतेई सिर्फ घाटी में रह सकते हैं। मणिपुर में 90 फीसदी पहाड़ी इलाका है और घाटी 10 फीसदी ही है। ऐसे में कुकी का पहाड़ पर तो घाटी में मैतेई का दबदबा है।
मणिपुर में एक कानून है। इसके तहत घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं। कूकी और नागा जनजाति कहीं भी बस सकते हैं और जमीन ले सकते हैं। यह नियम झगड़े की मूल जड़ है। मैतेई की 53 फीसदी आबादी को महज 10 फीसदी जमीन और उसमें भी हिस्सेदारी और कूकी व नागा की 40 फीसदी आबादी को 90 फीसदी जमीन और इसमें किसी को प्रवेश नहीं।