दोनों में समानताएं ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल दोनों ही महत्वाकांक्षी नेता हैं और दोनों ही अपनी पार्टी के विस्तार में जुटे हैं। खास बात ये है कि वर्ष 2014 से ही मोदी लहर के बावजूद दोनों अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं। इसके बाद भी दोनों अपने भौगोलिक दायरे में सीमित नहीं रहे, बल्कि अन्य राज्यों में भी भाजपा सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे। दोनों ही नेता संभल कर राजनीतिक दांव चल रहे कांग्रेस की भांति खुद हिन्दू विरोधी न दिखाकर दोनों मोदी विरोधी अवश्य बन गए हैं। चाहे किसान आंदोलन का समर्थन करना हो, अयोध्या मामले पर विचार रखने हो, खुद को राम भक्त बताना हो, या देश विरोधी ताकतों पर अपने विचार रखने हो दोनों ने समझदारी से अपने विचार रखें हैं जबकि कांग्रेस ऐसा कर पाने मे असफल रही है।
AAP का ऐलान 5 राज्यों मे लड़ेंगे चुनाव आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया है कि वो 2022 में गोवा, उत्तराखंड और पंजाब समेत पांच राज्यों में चुनाव लड़ेगी। हाल ही में गोवा विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया कि विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा भंडारी समाज से होगा। इसके साथ ही यहां ईसाइयों को भी लुभाने के लिए आम आदमी पार्टी ने दांव चला। गुरुवार को आम आदमी पार्टी ने कहा कि ‘हम विधानसभा में भंडारी समुदाय को प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं। अगर पार्टी इस तटीय राज्य में सत्ता में आती है तो मंत्रिमंडल में ईसाइयों को भी उचित महत्व दिया जाएगा और समुदाय के एक व्यक्ति को उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। बता दें कि राज्य में ईसाई समुदाय की आबादी लगभग 27 फीसदी हैं। इससे पहले इस पार्टी ने गोवा के लोगों को सत्ता में आने पर 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया था।
AAP के अलावा टीएमसी भी गोवा में आजमा रही किस्मत टीएमसी भी गोवा मे चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए शनिवार को टीएमसी ने लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा को पार्टी की गोवा इकाई का प्रभारी नियुक्त कर दिया। टीएमसी पार्टी ने इसपर अपने एक बयान में कहा, ‘‘हमारी माननीय अध्यक्ष ममता बनर्जी ने महुआ मोइत्रा को एआईटीसी की गोवा इकाई का तत्काल प्रभाव से प्रभारी नियुक्त करते हुए खुशी हो रही है।’’ इससे पहले पार्टी ने एक और दांव खेलते हुए कांग्रेस का दामन छोड़ टीएमसी में शामिल हुए गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो को पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया था। यही नहीं गोवा में पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन जैसे कई बड़े नेता इस राज्य का दौरा कर चुके हैं। गोवा में तृणमूल का चेहरा पूर्व टेनिस दिग्गज लिएंडर पेस को माना जा रहा है।
भाजपा और कांग्रेस के अलावा गोवा को मिलेंगे दो और विकल्प बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनावों गोवा की 40 सीटों में से कांग्रेस को 17 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 3 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी ने रातों-रात पासा पलटते हुए कांग्रेस के जीते हुए विधायकों को अपने पाले में कर सरकार बना ली थी। तब टीएमसी चुनावी मैदान में नहीं थी जबकि आप को हार मिली थी। हालांकि, इस बार स्थिति अलग है और गोवा की जनता के पास दो और विकल्प होंगे।
AAP का ‘मुफ्त’ वाला दांव फ्री बिजली का दांव आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में भी कर चुकी है। आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। दिल्ली के सीएम और AAP नेता अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड के लोगों से ये भी वादा कर दिया है कि अगर सत्ता में आए तो 300 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी, पुराने बिल माफ करने के साथ ही किसानों को मुफ्त बिजली देंगे।
बता दें कि उत्तराखंड की राजनीति में अब तक कांग्रेस और बीजेपी दो ही मुख्य पार्टियां रही हैं और 2017 के चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत भी मिला था। इस बार आम आदमी पार्टी एक अन्य विकल्प बनकर उभर रही, परंतु उत्तराखंड के मुख्य मुद्दों जैसे कि डेमोग्राफिक बदलाव, भूमि कानून पर अगर आप का ध्यान होता तो शायद पार्टी यहां कुछ कमाल दिखा सके। हालांकि, उत्तराखंड के हर गांव, हर मोहल्ले में पूर्व सैनिक हैं। आम आदमी पार्टी ने भारतीय सेना से रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर एक मजबूत दांव अवश्य चला है।
केजरीवाल का रोजगार का वादा आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड की जनता के लिए ‘हर घर रोजगार’ कार्यक्रम, बेरोजगार युवाओं के लिए 5,000 रुपये मासिक भत्ता, छह महीने की अवधि में 10,000 सरकारी नौकरियों का सृजन करने, सरकारी नौकरियों में 80 फीसदी आरक्षण का वादा भी किया है। यहां ये भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि बीजेपी ने पांच साल में 3 सीएम बनाए हैं और राज्य में सत्ता विरोधी लहर भी है। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी आगे बढ़ती है तो एक बढ़िया विकल्प भी साबित हो सकती है।
उत्तर प्रदेश में पार्टी की नजर बड़े तबके पर उत्तराखंड की भांति केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश की जनता से भी बिजली माफ करने, किसानों का कर्ज माफ, रोजगार सृजन जैसे लोकलुभावन वादे किये हैं। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने यूपी की कुछ सीटों पर 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था परंचु कुछ खास प्रदर्शन नहीं रहा था। इस बार पार्टी की नजर ओबीसी, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिम वोटरों पर है और इस बार पार्टी यूपी की 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
तृणमूल कांग्रेस की हो सकती है उत्तर प्रदेश में एंट्री तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि वो वाराणसी विधनसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ पीएम मोदी को हराएंगे, हो सकता है आखिरी समय मे तृणमूल कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी यूपी चुनावों के लिए कोई घोषणा हो। कुठ रिपोर्टस में ये दावा किया जा रहा था कि टीएमसी सपा से गठबंधन करने पर विचार कर सकती है। सपा के एक प्रवक्ता ने सितंबर में इस ओर इशारा करते हुए कहा था कि ‘वह अब एक ऐसी विपक्षी नेता हैं जिसने अपने राज्य में सभी बाधाओं को पार कर सांप्रदायिक ताकतों को कुचल दिया। यूपी में उनका अभियान निश्चित रूप से विपक्ष को बढ़ावा देगा।’
ममता की निगाह पूर्वोत्तर पर तृणमूल कांग्रेस का फोकस मुख्यतौर पर पूर्वोत्तर राज्यों पर है। त्रिपुरा पहले लेफ्ट का गढ़ था, लेकिन अब टीएमसी लगातार राज्य में सक्रिय है और बिप्लब कुमार देब की सरकार को घेरने का एक अवसर नहीं छोड़ रही। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने ये तक कहा था कि भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए हम 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे, अन्यथा त्रिपुरा में भी अफगानिस्तान जैसे हालात हो जाएंगे। इसके साथ ही अभिषेक बनर्जी ने सरकार बनाने का दावा तक कर दिया था। फिलहाल, 25 नवंबर नवंबर को होने वाले त्रिपुरा में नगर निगम चुनाव को लेकर भाजपा और टीएमसी की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है, जहां टीएमसी सुरक्षा की मांग कर रही है। इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा में स्वतंत्र और निष्पक्ष निगम चुनाव कराने के लिए राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन को पुख्ता इंतजाम करने के आदेश दिए हैं।
त्रिपुरा में नेताओं का पलायन त्रिपुरा में कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का टीएमसी में पलायन भी देखने को मिल रहा है। कांग्रेस की सुष्मिता देव का तृणमूल कांग्रेस में शामिल होना इसका उदाहरण है। भाजपा के राजीव बनर्जी के बाद आशीष दास ने भी टीएमसी का हाथ थाम लिया जिसने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है।
अरविन्द केजरीवाल ममता से कई कदम आगे ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए अन्य राज्यों में भी हाथ जमा रहे हैं और कुछ हद तक इन दोनों नेताओं ने अपना प्रभाव बढ़ाया भी है। हालांकि, दोनों नेताओं में अरविन्द केजरीवल पहले से ही लाभ की स्थिति में हैं। केजरीवाल पहले से ही पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्ष हैं। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में राज्य की 117 सीटों में से 20 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी। वहीं, अगले साल गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी AAP तैयार दिखाई दे रही है। मार्च में हुए सूरत में निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी, इसके बाद महेश सवानी भाजपा छोड़ आप में शामिल हो गये थे, इससे गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ही AAP को बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत मिल गई है।
लोकप्रियता में ममता पर भारी पड़े केजरीवाल केजरिवल की बात करें तो उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं ममता से थोड़ी पुरानी है, और लोकप्रियता के मामले में भी वो अपने राज्य दिल्ली से बाहर भी अपने पैर जमाने में कुछ हद तक सफल हो रहे हैं। एबीपी के सी-वोटर के सर्वे की मानें तो अगले वर्ष होने वाले चुनावों में आम आदमी पार्टी लाभ की स्थिति में है। वहीं, ममता बनर्जी की लोकप्रियता ‘एक बंगाली महिला’ तक सीमित है और वो देश के अन्य राज्यों में अपने पांव जमाने में लगी हैं।
ममता के विपरीत केजरीवल जात-पात या धर्म की राजनीति में नहीं बंधे हैं। भले ही गोवा, पंजाब में आम आदमी पार्टी को हार मिली हो, परंतु इस पार्टी को गोवा में 6.3 प्रतिशत वोट शेयर मिले थे, जबकि पंजाब मे 20 सीटें जीती थी। यहाँ तक कि सी-वोटर के यशवंत देशमुख ने एक टीवी शो में कहा था कि पीएम मोदी और राहुल गांधी के बाद सबसे ज्यादा रेटिंग पाने वाले नेता केजरीवाल हैं, न कि ममता।
केजरीवाल से नहीं, ममता से विपक्ष को उम्मीदें हालांकि, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस वर्ष पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से नंदीग्राम सीट से हारने के बावजूद डटकर ममता बनर्जी ने भाजपा का सामना किया था, और अब भवानीपुर उपचुनाव में भी एक तरफा जीत दर्ज कर दिखा दिया कि वो भाजपा के खिलाफ कितनी मजबूत हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी का जिस तरह का प्रदर्शन रहा है उससे पूरे विपक्ष में ममता को लेकर एक नए नेतृत्व की उम्मीद जागी है, और ममता बनर्जी लगातार विपक्ष के नेताओं से मिलकर 2024 के आम चुनावों से पहले महागठबंधन का चेहरा बनने के लिए प्रयास कर रही हैं। वहीं, अरविन्द केजरीवल इस मोर्चे पर थोड़ा पीछे नजर आते हैं।
कुल मिलाकर कहें तो दोनों ही नेताओं की मंजिल तो एक है, परंतु दोनों की राहें अलग हैं, और कौनसा नेता इसमें बाजी मारता है ये देखना दिलचस्प होगा।