वैसे तो हम बचपन से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में बढ़ते और सुनते आ रहे है। सभी लोग चाहते है कि उनकी तरह ऊंचाइयों को छुए और सबके लिए आदर्श बनें। लेकिन बहुत कम लोग जाते है कि गांधीजी से भी कभी गलतियां हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि बचपन में गांधीजी से भी कई गलतियां हुई, जैसे आम बच्चों से होती है। लेकिन उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और फिर नहीं दोहराया। जो बुरी आदतें उनके भीतर थीं। उन सभी का गांधी जी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में वर्णन किया है। उन्होंने चोरी से लेकर झूठ बोलने की बात का भी जिक्र किया है।
राष्ट्रपति ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि उनको एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी-सिगरेट पीने का चस्का लगा। कई बार उनके पास पैसे नहीं होते थे। हालांकि वे सिगरेट पीने के फायदे या नुकसान के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन उनको सिगरेट का धुंआ उड़ाने में मजा आता था। उनके चाचा को भी सिगरेट पीने की लत थी। चाचा और दूसरे बुजुर्गों को धुआं उड़ाते देखकर उनको भी सिगरेट फूंकने की इच्छा हुई। पैसे नहीं होने के कारण चाचा सिगरेट पीने के बाद जो ठूंठ फेंक देते, तो उनको चुराकर पीता शुरू कर दिया।
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अपने दोस्त के साथ लगी सिगरेट की लत के कारण उनको चोरी करनी पड़ती थी। दोस्त के साथ उन्होंने अपने चाचा के यहां चोरी कर सिगरेट पीते थे। जब सिगरेट खत्म हो जाती तो हरी सब्जियों के पत्तों की सिगरेट बनाकर पी लेते। कभी कभी नौकरों के पैसे चुराकर असली सिगरेट खरीद लाते। नौकरों के यहां जब ज्यादा चोरियां होने लगीं तो दोनों अपराधबोध से भर गए।
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गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपराध स्वीकार तो नहीं किया बल्कि अपराध से छुटकारे के लिए आत्महत्या करने का फैसला किया। दोनों आत्महत्या करने जंगल गए। धतूरा ढूंढने लगे। उस समय माना जाता था कि धतूरा खाने पर मौत हो जाती है। धतूरा मिलने के बाद वो दोनों एक मंदिर गए। मृत्यु से पहले के संस्कार पूरे किए। उसके बाद एक सुनसान स्थान पर धतूरे के बीज खाए, लेकिन जब कुछ नहीं हुआ तो आगे के कदम पर बहस करने लगे।