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MahaKumbh Mela 2025: महाकुंभ में 8000 संन्यासी बनेंगे नागा साधु, जानिए कैसे बनते है नागा साधु

MahaKumbh Mela 2025: महाकुंभ का शंखनाद होने में कुछ ही घंटों का समय बचा है। महाकुंभ के साथ ही नागा साधु बनने प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

नई दिल्लीJan 12, 2025 / 08:55 am

Shaitan Prajapat

MahaKumbh Mela 2025: महाकुंभ का शंखनाद होने में कुछ ही घंटों का समय बचा है। महाकुंभ के साथ ही नागा साधु बनने प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। नागा साधु बनने की पहली सीढ़ी के रूप में 8000 लोग पितरों का श्राद्ध और खुद का पिंडदान कर संन्यास लेंगे। ये लोग अलग-अलग अखाड़ों की ओर से अलग-अलग मुहूर्त में विविध अनुष्ठान के साथ 24 घंटे निराहार रहकर संन्यासी जीवन धारण करेंगे। संन्यासी बनने के बाद नागा साधु बनने के अंतिम मुकाम तक पहुंचने में 10 साल तक का समय लग सकता है। कितने लोग कठिन जीवन परीक्षा पास कर मुकाम तक पहुंचेंगे, यह कहा नहीं जा सकता लेकिन संगम के किनारे ये 8000 लोग श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़े कौतुहल और चर्चा का विषय बने हुए हैं। जूना अखाड़े के प्रबंधक दिनेश मिश्र ने बताया कि अखाड़े की चार मढ़ियों (ठिकानों) के महंत संन्यासी बनने की प्रक्रिया पूरी कराते हैं। रात में अखाड़े के अंदर सभी विजया हवन करते हैं। इसके बाद ही कोई व्यक्ति संन्यास की ओर बढ़ता है।

शिखा-सूत्र-दंड का त्याग

पंच परमेश्वर की संस्तुति के बाद इष्टदेव पूजन होता है। मुंडन, गंगा स्नान, पितरों का श्राद्ध व खुद का पिंडदान किया जाता है। देवी-देवता का स्मरण कर जनेऊ व दंड धारण, विजया हवन होता है। रात में गंगा में दंड, शिखा व सूत्र (जनेऊ) के विसर्जन के बाद महामंडलेश्वर उन्हें दीक्षा देते हैं। इस दौरान उपवास रखा जाता है और रुद्राक्ष की कंठी धारण कराकर संन्यास की दीक्षा दी जाती है।

संन्यास के दौरान अखाड़ों की नजर

तपस्या, नैतिक आचरण और जीवनचर्या के लिहाज से नागा साधु के नियमों का पालन कठिन है। संन्यास लेने के बाद इन साधुओं पर अखाड़ों की नजर रहती है। लगातार नजर इस रूप में कि वह संन्यासी का जीवन बिता सकता है या नहीं? नैतिक आचरण, भक्ति और सांसारिक मोह-माया संबंधी गतिविधियों पर गोपनीय नजर रखी जाती है। कसौटी पर कसने की यह प्रक्रिया दो साल से 6 साल तक तथा इससे ज्यादा भी हो सकती है। इस परीक्षा में पास होने के बाद ही नागा साधु की दीक्षा दी जाती है।

अखाड़े करते हैं पते की तस्दीक

संन्यासी जीवन धारण करवाने के लिए यह भी पता लगाया जाता है कि व्यक्ति क्यों ऐसा कर रहा है? उसकी भावना क्या है? अखाड़े उनके नाम-पता-पृष्ठभूमि की तस्दीक करने के बाद ही उन्हें दीक्षा देते हैं। इस दौरान अगर नाम, पता या गलत प्रवृत्ति का व्यक्ति पाया जाता है तो उसे संन्यास धारण नहीं कराया जाता।
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सुरक्षा का दायित्व अखाड़े का

अखाड़ों की सदस्यता पाने की प्रक्रिया भले जटिल हो लेकिन इसके बाद सदस्य की रक्षा का दायित्व अखाड़े का होता है। जूना अखाड़े के नियमों के मुताबिक अखाड़े का संत विदेश में चाहे किसी भी नाम से जाना जाए, उसकी सुरक्षा का दायित्व अखाड़े का ही होगा। उसकी संपत्ति पर अधिकार भी अखाड़े का ही होगा। पागल होने, मृत्यु होने या फिर चारित्रिक दोष सिद्ध होने पर जूना अखाड़े के संतों की सदस्यता खत्म होती है।

नेपाल की 100 से अधिक युवतियां लेंगी संन्यास

महाकुंभ में नेपाल की 100 से अधिक युवतियां भी संन्यास लेंगी। ये युवतियां नागा संन्यासियों के श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के माईबाड़ा में दीक्षा लेंगी। इससे माईबाड़ा की महिला सेना का विस्तार होगा। गौरतलब है कि महिला शंकराचार्य स्वामी हेमानंद गिरी माईबाड़ा को मजबूत बनाने के लिए नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड, कनाड़ा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान और मॉरीशस में सनातन धर्म के प्रचार में जुटी हैं।

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