दावा, जीतने की क्षमता के चलते दिया टिकट
तृणमूल और भाजपा ने अपने फैसलों को सही ठहराते हुए जीतने की क्षमता और राजनीतिक रणनीति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। दूसरे दलों से आए लोगों को खड़ा करने के कारण तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ कुछ क्षेत्रों में विरोध और असंतोष शुरू हो गया है। दलबदलुओं को उम्मीदवार बनाने से जुड़े जोखिमों को स्वीकार करते हुए दोनों पार्टियों के नेता कहते हैं कि उनकी निष्ठा की कोई गारंटी नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमारे पास उम्मीदवार के रूप में सक्षम नेताओं की कमी है। राजनीति में अनेक पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। जीतने की क्षमता और पार्टी की रणनीति सर्वोपरि है।
मैदान में उतारे
तृणमूल की ओर से मैदान में उतारे गए दलबदलुओं में विश्वजीत दास, मुकुटमणि अधिकारी और कृष्ण कल्याणी प्रमुख हैं, जो क्रमश: बनगांव, राणाघाट और रायगंज लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। बैरकपुर से भाजपा सांसद अर्जुन सिंह दो साल पहले तृणमूल में शामिल होने के बाद पिछले महीने भगवा खेमे में लौट आए थे। उनको फिर से पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है। तृणमूल कांग्रेस के दिग्गज विधायक तापस राय उम्मीदवार चयन को लेकर असहमति के कारण भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी ने उन्हें कोलकाता उत्तर से मैदान में उतारा है। शुभेंदु अधिकारी के छोटे भाई सौमेंदु अधिकारी भी तृणमूल कांग्रेस छोड़कऱ भाजपा में आए और पार्टी के उम्मीदवार हैं।
नए चेहरों को तरजीह
तृणमूल कांग्रेस ने निवर्तमान सांसदों में से 16 को फिर से उम्मीदवार बनाया है, लेकिन सात को मैदान में नहीं उतारा। इस बार उम्मीदवार सूची में 26 नए चेहरे हैं जिनमें 11 राजनीति में नए हैं। पिछली बार चुनाव हारे नेताओं को दूर रखा है।