फिलहाल विपक्ष के नेता के रूप में काम करते हुए शुभेंदु बार-बार सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए ममता को भवानीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना पड़ा। आखिर नंदीग्राम की उस मिट्टी की क्या विशेषता है, जो सत्ता तक पहुंचाती भी है और सबक भी सिखाती है, यह जानने के लिए मैं नंदीग्राम के लिए निकल पड़ा। पूर्वी मेदिनापुर जिले के इस शहर में ठहरने के लिए कोई होटल नहीं है, जबकि 10 किलोमीटर की दूरी पर औद्योगिक शहर और हल्दिया बंदरगाह है।
ऐसे में कोलकाता से दीघा जाने वाले रास्ते में चंडीपुर के एक गेस्ट हाउस में रात गुजारी और सुबह नंदीग्राम के लिए निकला। चमचमाती सड़कें बता रही थीं कि विकास की राह तैयार है। रास्ते में लहलहाते खेत दिखे। ड्राइवर ने बताया कि यहां पर्याप्त पानी है। साल में दो बार धान की फसल होती है। आदिवासी क्षेत्र है और मुस्लिम आबादी भी बड़ी संख्या में है।
लोग कोलकाता से कपड़ा और ऑर्डर लेकर आते हैं, फिर यहां सिलाई करते हैं। बातों ही बातों में 22 किलोमीटर का सफर तय कर नंदीग्राम पहुंच गए। यहां कॉलेज परिसर के बाहर मिले मोहम्मद सलाम हुसैन खान ने बताया कि यह चर्चित जगह है, लेकिन विकास नहीं हुआ। रेल सुविधा नहीं है। अस्पताल, स्कूल, कॉलेज बने हैं। पलायन ज्यादा है।
प. बंगाल के पत्रकार राज मिठोलिया ने बताया कि पंचायत चुनाव के बाद भाजपा मजबूत हुई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसके अनुसार परिणाम नहीं आए। हालांकि लेफ्ट और कांग्रेस खत्म सी हो गई। भाजपा विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित करने में सफल रही। प. बंगाल में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम की तारीफ हो रही है, वहीं भाजपा के लिए एक चुनौती आपसी गुटबाजी भी है। वर्षों से भाजपा के लिए काम करने वालों को तवज्जो नहीं मिल रही है, जबकि दूसरी पार्टी से आने वालों की ज्यादा पूछ-परख है। मुकुल राय की पूरे प्रदेश में अच्छी पकड़ थी, लेकिन अब वे खुद हाशिए पर हैं।
लोकसभा चुनाव में इस बार भी तृणमूल कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बना रही है। भाजपा भी जोर लगाने में जुटी है। वहीं, पिछले महीने सीपीएम की युवा ब्रिगेड की रैली में जिस तरह से भीड़ उमड़ी थी, उससे लेफ्ट की उम्मीदें बढ़ गई हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी तृणमूल की जगह लेफ्ट से गठबंधन चाह रहे थे। वर्तमान में बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। इनमें से 22 तृणमूल, 18 भाजपा और 2 कांग्रेस के पास है।
चुनावों में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा। शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव जेल में हैं। कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। तरह-तरह की चर्चा है। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तृणमूल को घेरने की तैयारी में है। राज्य में विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। इसे लेकर तृणमूल केंद्र सरकार पर आरोप लगाती है कि सहयोग नहीं मिल रहा है। वहीं पूरे बंगाल में रोजगार का मुद्दा हावी है। युवाओं के पास काम नहीं है। बंगाली समाज शिक्षित और नौकरी पसंद है। ऐसे में नौकरी के पर्याप्त अवसर नहीं होना भी चुनावी मुद्दा बनेगा।
2021 के विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। दूसरी पार्टी के नेताओं का तृणमूल कांग्रेस में प्रवेश हो रहा है। 2023 के उपचुनाव में मुर्शिदाबाद जिले के सागरदिघी सीट से जीते कांग्रेस के एकमात्र विधायक बायरन विश्वास भी तृणमूल में शामिल हो गए। भाजपा में गए सांसद सुनील मंडल सालभर में ही तृणमूल में लौट आए। भाजपा के दिग्गज नेता मुकुल रॉय भी तृणमूल में लौट गए।
मुकुल रॉय ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को 77 सीट तक पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते बिष्णुपर विधायक तन्मय घोष, बागदा से बिस्वजीत दास और कालीगंज के सोमेन रॉय टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक सात विधायक भाजपा छोड़ चुके हैं।
संदेशखाली कांड को लेकर भाजपा आक्रामक है। भाजपा नेता मौके पर डटे हुए हैं। मुख्य आरोपी का संबंध टीएमसी से है, ऐसे में टीएमसी बैकफुट पर है। पीएम मोदी समेत भाजपा नेता इसकी आलोचना कर चुके हैं। कई नेता संदेशखाली का दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस और सीपीएम इस मुद्दे पर शांत हैं। आदिवासी वोट हासिल करने के प्रयास चल रहे हैं। तृणमूल, लेफ्ट व भाजपा नेता आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुटे हैं। आदिवासियों के समर्थन से लोकसभा चुनाव की दिशा तय होगी। संदेशखाली में आदिवासियों के शोषण और अत्याचार का मुद्दा भी अहम है।