वायनाड से घर पहुंचने में लग गए तीन दिन मीडिया से बात करते हुए शौकत बताते हैं कि वह काम के सिलसिले में कुवैत में रहते हैं। लेकिन जह उन्हें वायनाड में हुई घटना की जानकारी मिली तो वह तुरंत घर आए। लेकिन वायनाड से अपने गांव मुंडक्कई पहुंचने में तीन दिन लग गए। क्योंकि गांव को शहर से जोड़ने वाला इरुवाझिनी नदी पर बना पुल लैंडस्लाइड में बह गया था। इससे मुंडक्कई पहुंचना करीब-करीब मुश्किल हो गया था। बाद में यहां पर आर्मी और एनडीआरएफ टीम ने एक रोप ब्रिज बनाया, जिससे बचावकर्ताओं को भी सुविधा हुई। वहीं, आर्मी के जवानों ने बेली ब्रिज बनाया। शुक्रवार को शौकत इस ब्रिज को पार करने में पहुंचने में कामयाब हुए और अपने गांव पहुंच गए।
मेरा सबकुछ खत्म हो गया-शौकत गांव पहुंचने और तबाही का मंजर देखने के बाद शौकत अपनी भावनाओं को संभाल नहीं पाए। उन्होंने कहा कि इस तबाही में मेरा सबकुछ खत्म हो गया। मेरे भाई, उनका परिवार सबकुछ चला गया। शौकत ने बताया कि उनकी पत्नी और बच्चे तो बच गए, क्योंकि पहली लैंडस्लाइड के बाद ही वह सब पहाड़ पर भाग गए। उन्होंने कहा कि मैंने खून-पसीने की कमाई से दो-मंजिला घर बनाया था। वह भी अब मलबे में तब्दील हो चुका है। मेरे पास रहने का कोई ठिकाना तक नहीं है। शौकत के भाई और अन्य परिजन एक ही इलाके में थोड़ी-थोड़ी दूर पर रहते थे।
लैंडस्लाइड में 300 से अधिक लोगों की मौत बता दें कि वायनाड में मंगलवार को तड़के भारी बारिश के बाद बड़े पैमाने पर हुई भूस्खलन की घटनाओं में 300 से ज्याद लोगों की मौत हो गई। केरल में भूस्खलन प्रभावित वायनाड जिले में तलाश अभियान शनिवार को पांचवें दिन भी जारी है। मलबे में फंसे लोगों को निकालने के लिए 1,300 से अधिक बचावकर्मियों, भारी मशीनों और अत्याधुनिक उपकरणों को क्षेत्र में तैनात किया गया है।