सोनम वांगचुक का कहना है कि वह चाहते हैं कि गणतंत्र दिवस पर उनका मैसेज प्रधानमंत्री मोदी और लोगों तक पहुंचे, जिसके लिए खारदुंगला दर्रे पर पांच दिन के उपवास (सांकेतिक अनशन) पर बैठुंगा।
सौर दुनिया के लिए रास्ता
वांगचुक ने बताया कि अपने अनशन के दौरान वह 18,000 फीट की ऊंचाई पर खारदुंगला की चोटी पर कैंप करेंगे, जहां तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस रहेगा। कार्बन-तटस्थ तेजी से वह गर्म पानी और सौर पैनलों का यूज करके उत्पन्न बिजली और एक सौर बिस्तर का यूज करेंगे। वांगचुक ने एक वीडियो में कहा कि “सौर दुनिया के लिए रास्ता है और यही वह है जिसे मैं शायद दुनिया के पहले जलवायु-तटस्थ उपवास पर दिखाने की कोशिश करूंगा।”
वांगचुक ने बताया कि अपने अनशन के दौरान वह 18,000 फीट की ऊंचाई पर खारदुंगला की चोटी पर कैंप करेंगे, जहां तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस रहेगा। कार्बन-तटस्थ तेजी से वह गर्म पानी और सौर पैनलों का यूज करके उत्पन्न बिजली और एक सौर बिस्तर का यूज करेंगे। वांगचुक ने एक वीडियो में कहा कि “सौर दुनिया के लिए रास्ता है और यही वह है जिसे मैं शायद दुनिया के पहले जलवायु-तटस्थ उपवास पर दिखाने की कोशिश करूंगा।”
“सूर्य की शक्ति” का प्रदर्शन करते हुए वांगचुक ने लद्दाख में एक मिट्टी के घर के अंदर से एक वीडियो साझा किया, जहां झोपड़ी के अंदर का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस था, जबकि बाहर का तापमान माइनस 20 डिग्री सेल्सियस था। अनशन की तैयारी के लिए वांगचुक ने माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में 11,500 फीट की ऊंचाई पर फयांग पर “टेस्ट-रन” किया। टेस्ट रन के बारे में बताते हुए वांगचुक ने कहा कि “एक टेस्ट रन सफल! माइनस 20 डिग्री सेल्सियस पर सब ठीक है। 26 जनवरी से शुरू होकर खारदुंगला में 18,000 फीट माइनस 40 डिग्री सेल्सियस पर मेरी जलवायु के करीब पहुंच रहा है…यह परीक्षण मेरी छत पर HIAL Phyang 11,500 फीट पर था।” इसी ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए बिजनेस मैन आनंद महिद्रा ने कहा ‘यह आदमी क्लाइमेट हीरो है।’
वांगचुक ने अपनी बातों में जोर देकर कहा है कि अगर लापरवाही जारी रही और लद्दाख को उद्योगों से सुरक्षा प्रदान करने से रोका गया, तो यहां के ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे। जिससे भारत और उसके पड़ोस में पानी की कमी के कारण भारी समस्या पैदा हो जाएगी। कश्मीर विश्वविद्यालय और अन्य शोध संगठनों के हाल के अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि लेह-लद्दाख में ग्लेशियर अपने दो-तिहाई तक समाप्त हो जाएंगे यदि उनकी ठीक से देखभाल नहीं की गई। इससे साथ ही शोध में पाया गया है कि राजमार्गों और मानवीय गतिविधियों से घिरे ग्लेशियर तुलनात्मक रूप से तेज गति से पिघल रहे हैं।
यह भी पढ़ें