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Krishna Janmashtami 2021: देश के कई हिस्सों में अलग तरीके से मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी, यहां जानिए पूरी डिटेल

Krishna Janmashtami 2021: जन्माष्टमी का पर्व भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हालांकि बहुत सी परंपराएं और रीति-रिवाज एक समान रहते हैं परन्तु फिर भी क्षेत्र विशेष के प्रभाव से उनमें अंतर आ जाता है।

Aug 30, 2021 / 08:22 am

सुनील शर्मा

Krishna Janmashtami 2021: नई दिल्ली। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व जन्माष्टमी देश भर में अत्यन्त उल्लास और धूम धाम से मनाया जाता है। भारत जैसे देश जहां हर पचास कोस पर परंपराएं और भाषा बदल जाती हैं, वहां त्यौहारों पर भी विविधताएं देखने को मिलती हैं। जन्माष्टमी का पर्व भी देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हालांकि बहुत सी परंपराएं और रीति-रिवाज एक समान रहते हैं परन्तु फिर भी क्षेत्र विशेष के प्रभाव से उनमें अंतर आ जाता है। आइए जानते हैं कि जन्माष्टमी का पर्व अलग-अलग स्थानों पर किस प्रकार मनाया जाता है।
उत्तरप्रदेश तथा उत्तरी मध्य भारत
वृन्दावन, जहां भगवान कृष्ण का लालन-पालन हुआ और उन्होंने बाल लीलाएं की, वहां पर यह सर्वाधिक प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इस अवसर पर विभिन्न स्थानों पर श्रीमद्भागवत और रासलीला का मंचन होता है। कृष्ण के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों का नाट्य रूपांतरण कर मंदिरों में भक्तों को दिखाया जाता है। मंदिरों को सजाकर रोशनी की जाती है। दिन भर मंदिरों में भजन-कीर्तन के कार्यक्रम होते हैं। भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में भगवान कृष्ण का प्राकट्य होने के बाद उनकी पूजा कर प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है।आसपास के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह जन्माष्टमी मनाई जाती है।
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गुजरात
समुद्र किनारे बसी नगरी द्वारिका में कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था। प्राचीन द्वारिका समय के साथ पानी में डूब गई परन्तु आधुनिक द्वारिका तथा गुजरात के अन्य भूभागों में आज भी जन्माष्टमी का पर्व अत्यधिक लोकप्रिय है। यहां दही हांडी का आयोजन किया जाता है। लोग मंदिरों में लोकनृत्य करते हैं, भक्त कीर्तन करते हुए द्वारिकाधीश मंदिर, नाथद्वारा जाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के मंदिरों तक जाने के लिए लोग जुलूस के रूप में एक साथ निकलते हैं।
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महाराष्ट्र
जन्माष्टमी के पर्व को महाराष्ट्र में गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है। यहां जन्माष्टमी पर दही हांडी की परंपरा का अनिवार्य रूप से पालन किया जाता है। एक हांडी (मिट्टी का घड़ा) में मक्खन भरकर उसे ढंक कर ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। युवाओं तथा बच्चों का दल पिरामिड़ के रूप में चढ़कर उस मटकी को तोड़ने का प्रयास करते हैं, जो समूह सबसे पहले मटकी तोड़ लेता है, वह विजेता होता है। विजेता समूह को नकद पुरस्कार भी दिया जाता है। एक तरह से यह समारोह पूरी तरह से सामुदायिक रूप से मनाया जाता है।
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पूर्वोत्तर भारत
यहां पर राधा-कृष्ण की प्रेमलीला का नाट्य रूप में मंचन किया जाता है। माता-पिता अपने बच्चों को कृष्ण और राधा एवं गोपियों के रूप में तैयार करते हैं। मंदिरों तथा घरों में श्रीमद्भागवत तथा श्रीमद्भागवतगीता का पाठ किया जाता है। मंदिरों में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी विविध लीलाओं का मंचन होता है।
पूर्वी भारत
यहां स्थित पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा में जन्माष्टमी को श्रीजयंती भी कहा जाता है। जन्माष्टमी के अगले दिन को नंदा उत्सव कहा जाता है और इस दिन नंद बाबा, माता यशोदा और कान्हा का स्मरण कर बालकृष्ण की मनोहर लीलाओं को याद किया जाता है। उड़ीसा के श्री जगन्नाथ मंदिर में भगवान को विविध स्वादिष्ट पकवानों को भोग लगाया जाता है।
दक्षिण भारत
भारत के दक्षिणी राज्यों में भी जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी कहा जाता है। लोग अपने घर तथा घर के बाहर रंगोली बनाकर सजाते हैं। घर की दहलीज से पूजा कक्ष तक भगवान कृष्ण के चरणस्वरूप नन्हे पैरों के निशान छापे जाते हैं। श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया जाता है। भक्तजन उपवास करते हैं।
आंध्रप्रदेश में दूध और दही के विभिन्न पकवान तैयार कर कृष्ण को भोग लगाया जाता है। युवा कृष्ण के रूप में तैयार होकर अपने साथियों से मिलने के लिए जाते हैं। घर में आने वाले फल तथा मिठाईयों का भोग कृष्ण को लगाकर ही ग्रहण किया जाता है।

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