दरअसल पालोनजी मिस्त्री का टाटा समूह के मुंबई स्थित मुख्यालय ‘बॉम्बे हाउस’ में खास रुतबा था। उनकी धमक ऐसी थी जब भी वे यहां आते तो सबके कद छोटे पड़ जाते हैं। यही वजह है कि, उनके रुतबे को देखते हुए उन्हें ‘फैंटम’ के नाम से जाना जाता था।
टाटा समूह के मामलों पर उनके अप्रत्यक्ष प्रभाव के लिए उन्हें अक्सर फैंटम ऑफ बॉम्बे हाउस (बॉम्बे हाउस के प्रेत) के रूप में जाना जाता था।
यह भी पढ़ें – दिग्गज कारोबारी पालोनजी मिस्त्री का निधन, 93 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस पालोनजी मिस्त्री का जन्म 1929 में भारत में एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंन उच्च शिक्षा के लिए लंदन के इंपीरियल कॉलेज जाने से पहले मुंबई के कैथेड्रल और जॉन केनन स्कूल में पढ़ाई की।
पालोनजी के करियर की शुरुआत 18 साल की उम्र में पारिवारिक बिजनेस से ही हो गई। 1865 में स्थापित अपनी पिता की कंपनी के लिए उन्होंने कई देशों में सेवाएं दीं।
हिंदी फिल्म इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गई फिल्म मुगल-ए-आजम से भी पालोनजी मिस्त्री का खास कनेक्शन है। दरअसल शापूरजी पल्लोनजी समूह ने के.आसिफ की प्रतिष्ठित हिंदी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ (1960) के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई। यह अपने समय की सबसे महंगी फिल्म थी।
टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले शापूरजी पैलोनजी ग्रुप के चेयरमैन पैलोनजी शापूरजी मिस्त्री 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की अपनी ही संपत्ति खर्च नहीं कर सकते। दरअसल टाटा सन्स के साथ उनकी संपत्ति का 84 फीसदी हिस्सा कानूनी विवाद में फंसा है।
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