क्या हैं नागरिकता मिलने के नियम
कानूनन भारत की नागरिकता के लिए 11 साल देश में रहना जरूरी है। नागरिकता संशोधन कानून में तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी। अन्य देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले वे किसी भी धर्म के हों।
ध्रुवीकरण के लिए किया गया : कांग्रेस
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में मोदी सरकार को सवा चार साल लग गए। प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार प्रोफेशनल ढंग से काम करती है। सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में लिया गया इतना समय प्रधानमंत्री के सफेद झूठ की झलक है। नियमों की अधिसूचना के लिए जान-बूझकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले का समय चुना गया है। ऐसा स्पष्ट रूप से धु्रवीकरण के लिए किया गया है, विशेष रूप से असम और बंगाल में।
सुरक्षा बढ़ाई, दिल्ली में फ्लैग मार्च
सीएए की अधिसूचना जारी होने के बाद नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में पुलिस अलर्ट पर है। नई दिल्ली के कई इलाकों में पुलिस ने फ्लैग मार्च किया और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात की गई हैं। सोशल मीडिया पर विशेष नजर रखी जा रही है।
राजस्थान समेत 9 राज्यों को विशेष अधिकार
पिछले दो साल में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला अधिकारियों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले ङ्क्षहदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों व ईसाइयों को नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं। इनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व महाराष्ट्र शामिल हैं।
सरकार ने प्रतिबद्धता पूरी की
गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा, सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 को अधिसूचित किया है। ये नियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताडि़त अल्पसंख्यकों को हमारे देश में नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाएंगे। इस अधिसूचना के साथ पीएम मोदी ने एक और प्रतिबद्धता पूरी की है और हमारे संविधान निर्माताओं के वादे को साकार किया है।
अधिसूचना के लिए 8 बार समय विस्तार
मोदी सरकार ने 11 दिसंबर, 2019 को ही संसद के दोनों सदनों से सीएए पास कराया था। अगले ही दिन राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई थी, लेकिन उस समय कानून के विरोध में दिल्ली में दंगा भड़क गया था। इससे सरकार ने इसे लागू नहीं किया और फिर कोविड के कारण मामला टल गया। किसी कानून पर राष्ट्रपति की सहमति मिलने के 6 माह के भीतर नियम अधिसूचित हो जाने चाहिए। ऐसा नहीं होता है तो लोकसभा और राÓयसभा में अधीनस्थ विधान समितियों से विस्तार की अनुमति लेनी होती है। सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में वर्ष 2020 से आठ बार गृह मंत्रालय ने संसदीय समितियों से नियमित अंतराल पर समय विस्तार लिया। आखिरकार सोमवार को मोदी सरकार ने इसे लागू कर दिया।
केरल और बंगाल में लागू नहीं करेंगे सीएए
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सीएए को सांप्रदायिक आधार पर विभाजन पैदा करने वाला कानून बताते हुए कहा कि किसी भी कीमत पर केरल में लागू नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है, उसे केरल में लागू नहीं किया जाएगा। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि सीएए के नियमों का अध्ययन किया जाएगा। इसके बाद ही कोई फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि सीएए के नाम पर लोगों को डिटेंशन कैंप में भेजा जाएगा तो विरोध करूंगी। सीएए बंगाल और पूर्वोत्तर के प्रति संवेदनशील है। लोकसभा चुनाव से पहले अशांति नहीं चाहते।
राजस्थान सहित कई राज्यों में रह रहे शरणार्थी
राजस्थान में पाकिस्तान से आए 30 हजार से अधिक हिंदू शरणार्थियों को इस कानून का लाभ मिलेगा। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर के राÓयों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों की काफी संख्या है।
मतुआ समुदाय के लोगों ने मनाया जश्न
पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के लोगों ने सीएए लागू करने को फैसले का स्वागत करते हुए जश्न मनाना शुरू कर दिया है। मतुआ समुदाय के लोगों का कहना है कि यह उनके लिए दूसरा स्वतंत्रता दिवस है। मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान से आने वालमतुआ समुदाय हिंदुओं का एक कमजोर वर्ग है। ये लोग भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान और बांग्लादेश के निर्माण के बाद भारत आ गए थे। पश्चिम बंगाल में 30 लाख की लगभग आबादी वाला यह समुदाय नादिया और बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में रहता है। इनका राÓय की 30 से अधिक विधानसभा सीटों पर प्रभुत्व है। इनमें से बहुत सारे लोगों को अभी भी भारत की नागरिकता का इंतजार है।