इस नोटिस के जरिए उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस भेजकर जवाब मांगा है, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर के बिना कोरोना वैक्सीनेशन प्रमाण पत्र की मांग की गई थी।
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दिल्ली सरकार का बड़ा फैसला, Corona Vaccine की पहली डोज नहीं लगवाने वाले कर्मचारियों की ऑफिस में नहीं होगी एंट्री कोरोना वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल कोट्टायम निवासी याचिकाकर्ता एम पीटर ने हाईकोर्ट में इसको लेकर एक याचिका दायर की है।
इस याचिका में पीटर ने तर्क दिया कि वर्तमान टीका प्रमाण पत्र एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और प्रधानमंत्री की तस्वीर के बिना प्रमाण पत्र की मांग की। याचिका दायर करने के बाद न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार ने केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को दो सप्ताह में अपने विचार दर्ज करने का निर्देश दिया।
पीटर ने कई देशों का दिया उदाहरण
अपनी याचिका में पीटर ने संयुक्त राज्य अमरीका, इंडोनेशिया, इजराइल, जर्मनी सहित कई देशों के वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी प्रस्तुत किए, जिसमें कहा गया है कि सर्टिफिकेट पर वे सभी जरूरी जानकारी रखते हैं, न कि सरकार के प्रमुखों की तस्वीरें।
पीटर ने यह भी कहा कि उसे ये प्रमाण-पत्र अपने साथ कई जगहों पर ले कर जाना है और सर्टिफिकेट में पीएम की तस्वीर की कोई प्रासंगिकता नहीं है। ऐसे में अगर सरकार चाहे तो लोगों को बिना किसी फोटो के प्रमाण पत्र लेने का विकल्प दिया जा सकता है।
यह भी पढ़ेँः Durga Puja 2021: कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, नियमों के साथ पंडालों में होगी एंट्री, ‘सिंदूर खेला’ की भी मंजूरी पीएम की फोटो के बिना वैक्सीन सर्टिफिकेट लेने का अधिकारयाचिकाकर्ता पीटर अधिवक्ता अजीत जॉय ने दायर याचिका में आरोप लगाया कि महामारी के खिलाफ लड़ाई को जनसंपर्क और मीडिया अभियान में बदल दिया गया है।
इससे ऐसा लगता है कि यह वन मैन शो है और पूरा अभियान एक व्यक्ति को प्रोजेक्ट करना है। वह भी सरकारी खजाने की कीमत पर हो रहा है।
रॉय ने कहा कि उन्हें पीएम मोदी की फोटो के बिना वैक्सीन सर्टिफिकेट लेने का पूरा अधिकार है।
ये है केंद्र सरकार का तर्क
केंद्र सरकार पहले ही वैक्सीन सर्टिफिकेट में प्रधानमंत्री की तस्वीर को शामिल किए जाने पर अपना तर्क दे चुकी है। सरकार के मुताबिक पीएम मोदी की फोटो कोविड के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में मदद करती है।
जब दो महीने पहले उच्च सदन में ये सवाल आया था तो स्वास्थ्य राज्य मंत्री बी पी पवार ने कहा कि जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए यह आदर्श तरीका है।