पंजाब और तमिलनाडु के बाद अब केरल सरकार ने लंबित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की ओर से कथित अत्यधिक देरी को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। शीर्ष अदालत के समक्ष राज्य सरकार ने एक रिट याचिका के जरिए दावा किया है कि विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों के निपटने में राज्यपाल द्वारा अनिश्चितकालीन देरी ने राज्य के लोगों को कल्याणकारी कानूनों के लाभों से वंचित कर दिया। यह देरी जनता के साथ गंभीर अन्याय है।
संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रहें राज्यपाल
केरल सरकार के द्वारा उच्चतम न्यायलय में दायर याचिका में कहा गया है कि विधेयकों को लंबे एवं अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण भी स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इसके अलावा यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केरल राज्य के लोगों को कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित कर उनके अधिकारों को भी पराजित करता है। अत्यधिक देरी संविधान द्वारा परिकल्पित संसदीय लोकतंत्र की योजना के विपरीत होने के अलावा लोगों की सामूहिक इच्छा को एकतरफा तरीके से दरकिनार करने के समान है।
राज्यपाल ने 8 विधेयकों को नहीं दी मंजरी
सरकार ने याचिका में दावा किया है कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनकी सहमति के लिए राज्यपाल को प्रस्तुत किए गए आठ विधेयक लंबित थे। इनमें से तीन विधेयक दो साल से अधिक समय से, जबकि तीन पूरे एक वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं। सरकार ने दावा किया कि राज्यपाल के आचरण से कानून के शासन और लोकतांत्रिक सुशासन सहित हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों और बुनियादी आधारों को बर्बाद करने का खतरा है। इसके साथ ही (यह व्यवहार) राज्य के लोगों के कल्याणकारी उपायों के अधिकारों को भी नुकसान पहुंचता है।यह स्थिति संविधान का पूर्ण विध्वंस है
केरल सरकार की ओर से यह रिट याचिका दायर करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विपक्ष शासित पंजाब और तमिलनाडु सरकारों द्वारा दायर की गई ऐसी ही याचिकाओं के कुछ दिनों के भीतर दायर कई है।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 200
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास शक्ति है कि वह किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए अपने पास रोके रख सकते हैं। अगर यह वित्त विधेयक नहीं है तो राज्यपाल इन विधेयकों को फिर से विधानसभा के पास विचार के लिए भेज सकते हैं। अगर विधानसभा फिर से इन विधेयकों को पास कर देती है तो फिर राज्यपाल इस विधेयक को अपने पास नहीं रोक सकते। अप्रैल 2023 में अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को जल्द पास करने का निर्देश दिया था।
पंजाब और तमिलनाडु का पहले से चल रहा विवाद
बता दें कि तमिलनाडु और पंजाब ने पहले बिलों को मंजूरी देने के मुद्दे पर अपने-अपने राज्यपालों द्वारा निष्क्रियता का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और उनके पंजाब समकक्ष बनवारीलाल पुरोहित का एमके स्टालिन और भगवंत मान के नेतृत्व वाली द्रमुक और आम आदमी पार्टी (आप) सरकारों के साथ विवाद चल रहा है।
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