दरअसल, फोटो और वीडियो की शूटिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश शुक्रवार (15 जुलाई) को कर्नाटक की स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइड एसोसिएशन द्वारा राज्य सरकार को लिखी गई चिट्ठी के आधार पर दिया था। चिट्ठी में कहा गया था कि कुछ लोग सरकारी दफ्तरों में आकर फोटो और वीडियो खींच कर उन्हें तंग करते हैं। DPAR ने शुक्रवार को चिट्ठी का हवाला देते हुए कहा कि इस चिट्ठी में जो बातें लिखी गई हैं वो जायज लग रही है और उसको ध्यान में रखते हुए राज्य के सभी सरकारी दफ्तरों में जो आम लोग किसी काम के सिलसिले में आते हैं, वह वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी नहीं कर सकते हैं।
इसके लिए सरकार ने एक नोटिफिकेशन भी जारी किया था, जिसमें कहा गया कि सरकारी कार्यालयों में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी से वहां काम करने वाली महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आदेश में कहा गया कि कुछ लोग काम के घंटों के दौरान सरकारी कार्यालयों में फोटो और वीडियो लेने आते हैं और इसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर देते हैं। इससे सरकार की बदानामी हो रही है, इसलिए यह प्रतिबंध लगाना आवश्यक है।
वहीं इस आदेश के बाद कई समाज सेवी संगठन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लगने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नाराज हो गए। उन्होंने इस आदेश को गलत और गैरकानूनी बताया। उनके मुताबिक सरकार के ऐसे आदेश भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकते हैं। कहा गया गी सरकार इस आदेश के जरिए अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है, और सरकारी कर्मचारी संघ की चिट्ठी के आड़ में अपने भ्रष्टाचार को छुपाने की कोशिश कर रही है।