माना जाता है कि 18वीं शताब्दी में मैसूर शासक टीपू ने इन मंदिरों में अपनी यात्रा के दौरान आरती का नामकरण किया था। टीपू सुल्तान चाहता था कि मंदिर के पुजारी उसके ‘सम्मान’ में मंदिरों की आरती को करें। इसी के बाद कोल्लूर के मंदिरों मे ये रिवाज शुरू हुआ। मेलकोट मंदिर हैदर अली और बेटे टीपू के शासनकाल से हर दिन शाम 7 बजे ‘सलाम आरती (मशाल सलामी)’ आयोजित कर रहा था।
कुछ दिन पहले इस सलाम आरती का नाम बदलने की माँग उठी और अब खबर है कि ये नाम बदलकर ‘आरती नमस्कार’ किया जा रहा है। स्कॉलर और कर्नाटक धर्मिका परिषद के सदस्य कशेकोडि सूर्यनारायण भट ने इसका नाम बदलने की मांग की थी। भट ने कहा था सलाम शब्द हमारा नहीं टीपू का दिया हुआ है। इसके इसके बाद केवल मेलकोट में नहीं बल्कि कर्नाटक के सभी मंदिरों में आरती का नाम बदलने का एक आधिकारिक आदेश जारी हो जाएगा।
वहीं, कर्नाटक में मुजराई मंत्री शशिकला जोले ने शनिवार को कहा कि सरकार ने इन रीति रिवाजों के नाम बदकर इन्हें सथानीय नाम देने का फैसला किया है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इन रीति-रिवाजों को बंद नहीं किया जाएगा। बता दें, टीपू सुल्तान को लेकर कर्नाटक में हमेशा ही दो धड़े रहे हैं, एक वर्ग जहां उनको हीरो मानता है तो वहीं दूसरा वर्ग उनकी आलोचना करता है।
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