यह होती है बाधा, न्याय में होती है देरी
अधीनस्थ अदालतों में पद भरने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन कभी बजट की समस्या, कहीं परीक्षा प्रक्रिया में देरी या अदालती विवाद के कारण अपेक्षित भर्ती समय पर पूरी नहीं हो पाती। कई राज्यों में राजनीतिक कारणों से या प्रशासनिक इकाइयों में बदलाव (नए जिले-तहसील बनाना) से नई अदालतें खोल दी जाती हैं लेकिन नए मजिस्ट्रेट या जज तत्काल नहीं मिल पाते। इससे रिक्तियों की संख्या बढ़ जाती है। जजों के पद खाली रहने का मतलब यह नहीं कि आम लोगों के मुकदमे या उन पर सुनवाई रुक जाती है। दरअसल हर कोर्ट की एक लिंक या वैकल्पिक अदालत होती है। मूल अदालत में जज का पद रिक्त होने पर लिंक कोर्ट में सुनवाई होती है लेकिन पहले से मुकदमों के बोझ से दबी अदालतों के पास अतिरिक्त काम आने से अंतत: मुकदमों के निस्तारण में विलंब होता है। इससे आम वादियों को नुकसान होता है।
राष्ट्रपति, सीजेआइ भी जता चुके चिंता
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से लेकर देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ तक मुकदमों के निस्तारण में देरी और उसके खतरों के बारे में चिंता जता चुके हैं लेकिन निचली अदालतों में मजिस्ट्रेटों-जजों के खाली पद इस चिंता को कम करने के बजाय बढ़ा ही रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति मुर्मु ने न्यायिक अधिकारियों के सम्मेलन में अपनी चिंता जाहिर करते हुए खुले तौर पर कहा था कि मुकदमेबाजी की थकान के कारण लोग अपने मामले वापस ले लेते हैं। सीजेआइ चंद्रचूड़ ने गत माह एक कार्यक्रम में कहा कि लोगों के लिए अदालत की प्रक्रिया ही सजा बन जाती है और वे अदालतों से दूर जाना चाहते हैं।
प्रमुख राज्यों/यूटी में अधीनस्थ अदालतों में खाली पद
उत्तर प्रदेश – 973 गुजरात – 535 बिहार – 483 तमिलनाडु – 339 राजस्थान – 320 मध्यप्रदेश -319 महाराष्ट्र -250 कर्नाटक -244 झारखंड -203 छत्तीसगढ़ -195 हरियाणा-217 जम्मू और कश्मीर- 100 ओडिशा – 267 प.बंगाल एवं अंडमान-निकोबार – 242 तेलंगाना – 115 आंध्र प्रदेश – 74 केरल -66 अरुणाचल प्रदेश – 11 असम -25 दादरा एवं नगर हवेली – 1 दिल्ली -81 गोवा-10 हिमाचल प्रदेश – 19 लद्दाख-8 लक्षद्वीप -2 मणिपुर – 13 मेघालय – 43 मिजोरम – 29 नगालैंड-10 पुडुचेरी -19 पंजाब – 73 सिक्किम – 12 त्रिपुरा – 24 उत्तराखंड – 28