रेलवे बोर्ड, उत्तर रेलवे और कोंकण रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा चिनाब पुल के निरीक्षण के बाद गुरुवार को एक आठ कोच वाले मेमू ट्रेन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। रामबन जिले के संगलदान और रियासी के बीच 46 किलोमीटर की विद्युतीकृत लाइन खंड पर मेमू ट्रेन 40 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से गुजरी। ट्रेन संगलदान से 12:35 बजे चल करके 14:05 बजे रियासी स्टेशन सफलतापूर्वक पहुंची।
यह ट्रेन नौ सुरंगों से होकर गुजरी, जिनकी कुल लंबाई 40.787 किलोमीटर है और सबसे लंबी सुरंग टी-44 करीब 11.13 किलोमीटर की है। यह पहली पूरी ट्रेन थी जिसने चिनाब नदी पर दुग्गा और बक्कल स्टेशनों के बीच दुनिया के सबसे ऊंचे आर्च रेल पुल को पार किया है। इस रेलखंड में रियासी, बक्कल, दुग्गा और सावलकोटे स्टेशन रियासी जिले में स्थित हैं। इस खंड पर रेलवे विद्युतीकरण कार्य भारतीय रेलवे पर पहली बार 25 केवी पर अत्याधुनिक तकनीक, आरओसीएस (रिगिड ओवरहेड कंडक्टर सिस्टम) के साथ किया गया है।
यूएसबीआरएल परियोजना में करीब 48.1 किलोमीटर लंबे बानिहाल-संगलदान खंड का उद्घाटन इसी साल 20 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था इस खंड में करीब 43 किलोमीटर का हिस्सा सुरंगों में स्थित है। सबसे पहले 118 किलोमीटर लंबे काजीगुंड-बारामूला खंड के पहले चरण का उद्घाटन अक्टूबर 2009 में किया गया था। जून 2013 में 18 किलोमीटर लंबे बानिहाल-काजीगुंड खंड और जुलाई 2014 में करीब 25 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्री माता वैष्णो देवी कटरा खंड का उद्घाटन हुआ था।
यह आज़ादी के बाद भारतीय रेलवे की सबसे चुनौतीपूर्ण रेल परियोजना है। कश्मीर घाटी के लिए निर्बाध और परेशानी मुक्त कनेक्टिविटी प्रदान करने में यूएसबीआरएल परियोजना के महत्व को देखते हुए, इसे वर्ष 2002 में “राष्ट्रीय परियोजना” घोषित किया गया था। यूएसबीआरएल परियोजना में 38 सुरंगें हैं जिनकी कुल लंबाई 119 किलोमीटर हैं। सबसे लंबी सुरंग (टी-49) की लंबाई 12.75 किलोमीटर है और यह देश की सबसे लंबी परिवहन सुरंग है। पुलों की संख्या 927 है जिनकी कुल लंबाई 13 किलोमीटर है। इन पुलों में प्रतिष्ठित चिनाब पुल की कुल लंबाई 1315 मीटर, आर्क विस्तार 467 मीटर और नदी तल से ऊंचाई 359 मीटर है, जो एफिल टॉवर से लगभग 35 मीटर ऊंचाई पर है और इसे दुनिया का सबसे ऊंचा आर्क रेलवे पुल माना गया है।
यह पुल इस तरह के परीक्षणों की एक श्रृंखला के सफल संचालन के बाद, अब सभी ट्रेन सेवाओं को चलाने के लिए उपलब्ध होगा जो जम्मू क्षेत्र और शेष भारत के साथ कश्मीर घाटी के निर्बाध एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह लोगों और वस्तुओं की आसान आवाजाही को सुविधाजनक बनाकर सामाजिक एकीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा और पर्यटन और व्यापार जैसी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।