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Jharkhand Election: क्या आदिवासियों का BJP को मिलेगा साथ या राह होगी मुश्किल?

Jharkhand Election: झारखंड विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। वहीं तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। सभी दल सभी वर्ग के मतदाताओं को साधने में जुट गए हैं।

रांचीOct 20, 2024 / 06:27 pm

Ashib Khan

Jharkhand Election: झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election) का बिगुल बज चुका है। वहीं तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। सभी दल सभी वर्ग के मतदाताओं को साधने में जुट गए हैं। झारखंड में आदिवासी समुदाय सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि जिस दल के साथ आदिवासी हैं, उसकी जीत की राह आसान हो जाती है। ऐसे में हर किसी के जहन में यह सवाल है कि आदिवासी समाज के लोग किस दल को अपना आशीर्वाद देंगे। सवाल यह भी है कि क्या आदिवासी समाज के लोग BJP को अवसर देंगे या फिर उनकी राह मुश्किल करेंगे।

BJP और JMM को मिल सकता है साथ

BJP और JMM दोनों दलों को आदिवासी समाज का साथ मिल सकता है। बीजेपी कई बार आदिवासी समाज के लिए अपनी योजनाओं के माध्यम से उनके विकास की बात करती रही है। इसके अलावा देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu), ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास (Raghubar Das) और मुख्यमंत्री मोहन माझी जैसी हस्तियां आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भाजपा आदिवासी समुदाय पर विशेष ध्यान दे रही है और अपनी पकड़ को लगातार मजबूत कर रही है। 

आदिवासी समाज से आते हैं हेमंत सोरेन

दूसरी तरफ, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) भी आदिवासी समाज से आते हैं। जब वह जेल गए तो उनके समर्थकों का आरोप था कि बीजेपी ने आदिवासी मुख्यमंत्री को साजिश के तहत फंसाकर जेल भेजा था। इस बात पर विपक्षियों पार्टियों ने भी मुखरता दिखाई थी। इसलिए भावनात्मक तौर पर आदिवासी समाज के लोग हेमंत सोरेन की पार्टी के साथ भी खड़े हो सकते हैं। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गहरा असर है और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यह पार्टी आदिवासी वोट बैंक के लिए जानी जाती है।

कई चेहरे बीजेपी में हुए शामिल

लेकिन, पिछले पांच सालों में झामुमो के कई कद्दावर नेता हेमंत सोरेन से अलग हो चुके हैं। इस लिस्ट में शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से मशहूर चंपई सोरेन भी शामिल हैं। दूसरी तरफ, आदिवासी समाज के कई बड़े चेहरे बीजेपी में शामिल हुए हैं। इनमें कद्दावर नेता बाबूलाल मरांडी का भी नाम शामिल है। यह झामुमो के लिए पूरी तरह अनुकूल स्थिति नहीं है।

43 सीटों पर आदिवासियों का है दबदबा

बता दें कि झारखंड में 81 विधानसभा सीट है। इनमें से 43 विधानसभा सीटों ऐसी हैं जहां पर आदिवासियों का दबदबा माना जाता है। इन 43 सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा आदिवासी है। वहीं 43 में से 22 विधानसभा सीटें तो ऐसी हैं जहां आधी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है। आदिवासी समाज के लोगों के लिए जल, जंगल, जमीन और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे बहुत अहम रहे हैं। इसी को देखते हुए भाजपा, कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय पार्टियां ने इन मुद्दों को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया है। 
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