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Lok Sabha elections 2024: जामनगर की डगर भाजपा से शुरू और भाजपा पर खत्म

जामनगर की राजनीति की बात करें तो वर्ष 2012 से यहां का सियासी राग भाजपा से शुरू होकर भाजपा पर ही खत्म हो रहा है। जिला पंचायत से लेकर लोकसभा तक भाजपा ही काबिज है। जामनगर औद्योगिक तौर पर संपन्न है। जामनगर की पहचान मोती खावड़ी में दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी की वजह से ज्यादा है। पढ़िए जामनगर से सिद्धार्थ भट्ट की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीApr 29, 2024 / 06:49 am

Paritosh Shahi

गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में समंदर की शुरुआत वहीं से होती है जहां जामनगर खत्म होता है। लोकसभा चुनाव के माहौल में यह चर्चा है कि समुद्र से उठने वाली लहरें भी जामनगर की सियासी हवा का रुख शायद ही बदल पाए। समंदर में लहरों के उतार-चढ़ाव से बहती ठंडी हवाओं से ठंडक का वातावरण है, ठीक वैसा ही यहां का चुनावी माहौल दिखता है। मतदान की तिथि 7 मई नजदीक आने को हैं, लेकिन पूरे संसदीय क्षेत्र में कहीं चुनाव प्रचार का शोर नहीं है।
जामनगर की राजनीति की बात करें तो वर्ष 2012 से यहां का सियासी राग भाजपा से शुरू होकर भाजपा पर ही खत्म हो रहा है। जिला पंचायत से लेकर लोकसभा तक भाजपा ही काबिज है। जामनगर औद्योगिक तौर पर संपन्न है। जामनगर की पहचान मोती खावड़ी में दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी की वजह से ज्यादा है। इसी कारण जामनगर को ऑयल सिटी भी कहा जाता है। अरब सागर के तट पर बसा होने की वजह से जामनगर पर्यटन स्थल है। इसी लोकसभा क्षेत्र के द्वारिका का धार्मिक महात्मव भी है। जामनगर में पसरी औद्योगिक इकाइयां यहां विकास की कहानी खुद-बखुद ही कह देती हैं। इसलिए डबल इंजन की सरकार के दम पर क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का सबसे बड़ा दावा भी भाजपा के पास ही है।

पूनम बेन माडम तीसरी बार मैदान में

पिछली दो बार से यहां से सांसद पूनम बेन माडम को भाजपा ने तीसरी बार भी मैदान में उतारा है। वे हैट्रिक लगाने के प्रति आश्वस्त है। वहीं कांग्रेस ने पाटीदार मतों की उम्मीद में यहां से जयंती भाई पुरुषोत्तम भाई मारविया को उम्मीदवार बनाया है। वे जिला पंचायत मे नेता प्रतिपक्ष है।
भाजपा प्रत्याशी पूनम माडम एक दौर में कांग्रेस में रही है। वर्ष 2012 में वे भाजपा में शामिल हुईं और उसी दिन भाजपा का टिकट लेकर खम्मातिया विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर उन्होंने नए राजनीतिक सफर की शुरुआत की। पूनम को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता व चाचा दोनों विधायक रहे हैं। वर्ष 2014 में पूनम बेन माडम को भाजपा ने उनके चाचा विक्रम भाई माडम के खिलाफ मैदान में उतार दिया था। इस तरह से वे पहली बार लोकसभा में पहुंची। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों की जीत के बाद पूनम अब जीत की हैट्रिक बनाने को बेताब है। कांग्रेस ने इस बार नए चेहरे के रूप में मारविया को मैदान में उतारा है। ओबीसी चेहरे के रूप में पूनम को अपने समाज के यादव वोट बैंक से काफी उम्मीदें हैं। पन्द्रह साल बाद यह पहला मौका है जब इस सीट पर यादव व पाटीदार प्रत्याशी आमने-सामने हैं।

मुकाबला एक तरफा रहने की उम्मीद

जामनगर ही नहीं बल्कि गुजरात की कमोबेश सभी लोकसभा सीटों के बारे में यह कहा जाता है कि यहां 26 सीटों पर लड़ाई जीत के लिए नहीं बल्कि सबसे बड़ी जीत के लिए हो रही है। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि जामनगर में मुकाबला एक तरफा ही रहने वाला है। लेकिन सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा। इसे चार जून को ईवीएम मशीनों के अलावा कोई नहीं बता सकता। इसलिए विपक्षी दल भाजपा को अति उत्साह में बताते हैं तो खुद की स्थिति मजबूत होने का दावा करते हैं।
जामनगर व राजकोट चूंकि सटे हुए लोकसभा क्षेत्र हैं। इसलिए राजकोट में भाजपा प्रत्याशी व केन्द्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला की क्षत्रियों को लेकर की गई विवादित टिप्पणी का असर यहां भी है। राजपूत समाज की महिलाओं ने पिछले दिनों यहां बड़ा प्रदर्शन भी किया था। कांग्रेस प्रत्याशी भी इस टिप्पणी को भुनाने में जुटे हैं। वहीं भाजपा समर्थकों का कहना है कि चूंकि रूपाला अपनी बात के लिए दो बार माफी मांग चुके हैं इसलिए इस मुद्दे को चुनावी नफा-नुकसान से नहीं देखना चाहिए।
चुनावी माहौल शांत है। चुनावी पोस्टर से ज्यादा तो यहां राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के पोस्टर नजर आ रहे हैं। कहीं-कहीं प्रचार सामग्री जरूर दिख जाती है। वैसे तो यहां कोई चुनावी बातें करता नहीं दिखता, लेकिन सवाल करने पर लोग भाजपा के मजबूत होने का संकेत देते हैं। मुफ्त राशन, चिकित्सा व सस्ते आवास की योजनाएं यहां लोगों को सत्तारूढ़ दल के नजदीक आसानी से ला रही है। यहां रेल-हवाई सेवाओं का विस्तार भी खूब हुआ है। अब यहां अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त बस स्टैंड भी बन रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर शोध को लेकर भी जामनगर में विश्वस्तरीय केन्द्र बनने जा रहा है। विकास कार्यों की फेहरिस्त के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी (गुजराती में वड़ा प्रधान ) का चेहरा तो है ही। इलाके के अल्पसंख्यकों में भी सरकारी योजनाओं को लेकर संतुष्टि का भाव है।

जामनगर में मिले साजिद ने बताया कि सरकार की ओर से मिलने वाली नि:शुल्क सुविधाओं को लेकर कहीं कोई भेदभाव नहीं है। हां विपक्षी जरूर इसे हवा देने में जुटा रहता हैं। बांधनी साड़ी के व्यापारी परिमल शाह कहते हैं कि भला नरेन्द्र मोदी के अलावा कौन है जो देश को इतनी ऊंचाइयों पर ले जा सके। बीमा अधिकारी रहे नितिन मकीम कहते हैं कि कौन गुजराती नहीं चाहेगा कि नरेन्द्र मोदी फिर से पीएम नहीं बनें। आप खुद समझ जाइए कि हवा का रुख किधर है?
राम मंदिर का निर्माण तो यहां बड़ा मुद्दा है ही, भेंट द्वारिका का सिग्नेचर ब्रिज भी इस इलाके में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के क्षेत्र में बड़ी सौगात साबित हो रहा है। फिर भी कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त है कि परिवर्तन के पक्षधर मतदाता उसके साथ ही आएंगे। जामनगर कांग्रेस कार्यालय के बाहर शहर कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह जड़ेजा से मुलाकात हुई तो उन्होंने भी इसी उम्मीद को पार्टी का सहारा बताया। उनका कहना था कि रूपाला के बयान से खफा राजपूतों का बड़ा वर्ग व पाटीदार समुदाय इस बार कांग्रेस के साथ है। विपक्ष को ऐसा भी लग रहा है कि लगातार दस वर्ष सांसद रहीं पूनम माडाम के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल का फायदा भी कांग्रेस को होगा। वहीं भाजपा कार्यालय में मिले शहर उपाध्यक्ष विजय सिंह जड़ेजा निश्चिंत नजर आए। उनका दावा था कि मोदी के प्रदेश में हम पिछली बार की तरह सभी सीटों पर जीत हासिल करेंगे।
भाजपा के लिए आणंद, राजकोट, बनासकांठा, वलसाड, सुरेन्द्रनगर, जामनगर सीट पर क्षत्रिय समाज की नाराजगी से थोड़ी-बहुत चुनौती मिलने की आशंका है। भाजपा ने इसे ही देखते हुए नरेन्द्र मोदी की इन सीटों पर पीएम की सभाएं कराने का इरादा किया है। भाजपा समर्थकों को उम्मीद है कि कहीं कुछ नाराजगी भी समाज व समुदाय विशेष के मतदाताओं में होगी तो इस सभा के बाद खत्म हो जाएगी।

भाजपा का मजबूत पक्ष

  • मोदी का नाम
  • राज्य सरकार के काम
  • मजबूत संगठन
  • सामाजिक संस्थाओं और व्यापारियों का भरपूर समर्थन
  • पूनम बेन माडम का सतत संपर्क

भाजपा का कमजोर पक्ष

  • अति आत्मविश्वास
  • प्रत्याशी को लेकर कई जगह नाराजगी
  • विकास के कई काम अधूरे रह गए।

कांग्रेस की ताकत

  • नया चेहरा
  • पाटीदार समाज का प्रतिनिधित्व
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ मजबूत

कांग्रेस की कमजोरी

  • बिखरा हुआ संगठन
  • कार्यकर्ताओं में निराशा
  • संसाधनों का अभाव

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