26 प्रत्याशी चुनाव मैदान में
बारामूला की सड़क झंड़ों से अटी पड़ी है। यहां 26 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। श्रीनगर से पाटन होते हुए जैसे ही बारामूला पहुचंते हैं, तो सड़क दो भागों में बंट जाती है। दाहिने तरफ की सड़क रफीयाबाद जाती है। इस सड़क पर सेब लाल और नरम हैं। राजनीतिक लड़ाई तल्ख नहीं है। बाएं तरफ की सड़क उरी की ओर जाती है। यहां 50 किलोमीटर तक अखरोट की क्यारी है। यहां सियासी जंग अखरोट के छिलके की तरह काफी कड़ी महससू हो रही है। दस साल बाद हो रहे चुनावों में ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर राजनीति का अखरोट कौन सा दल सही से फोड़ पाता है? गोली चलाने वाले खुद चुनाव मैदान में
बारामूला में मोटरसाइकिल मरम्मत का कार्य करने वाले एजाज अहमद कहते हैं कि आप जो 2014 का परिणाम देख रहे हैं वह स्थानीय नेताओं के वर्चस्व का कमाल था। पीडीपी का दक्षिण कश्मीर में इलाका है। यहां कोई इलाका नहीं है। कपड़ों की दुकान करने वाले खालिद कहते हैं कि पहली बार शांति से चुनाव हो रहा है, वरना बहुत मुश्किल से कोई प्रचार कर पाता था। मतदान से ठीक पहले गोलीबारी होती और चुनाव का बहिष्कार हो जाता था। अब गोली चलाने वाले खुद ही चुनाव मैदान में हैं। बात सरजन बरकाती की करें या फिर अफजल गुरू के भाई की।
सबकी लड़ाई नेशनल कांफ्रेंस से
बारामूला से उरी तक कभी नेशनल कांफ्रेंस का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 2014 में पीडीपी ने ऐसी गणित बैठाई कि पूरा इलाका ही हरे रंग में रंग गया। गुलमर्ग हो या पाटन। रफीयाबाद हो या बारामूला, सब पीडीपी के कब्जे में आ गया। नेशनल कांफ्रेंस सिर्फ एक उरी सीट बचा पाई। इस बार हालात अलग हैं। इन सीटों से पीडीपी की हरियाली उतर चुकी है। एनसी की लाली छाई हुई है।