आतंक की आग में झुलस रहे युवा
मस्जिद की मीनारों से आतंकी तकरीरों से घाटी में आतंक की आग लगाने वाले सरजन बरकाती को महज 438 वोट मिलें जबकि उसके इशारों में पर हजारों युवा आतंक की आग में झुलस चुके हैं। यह वही शख्स है जो कि आतंकी बुरहान वानी का मार्ग प्रशस्त कर रहा था और युवाओं को आतंक की आग में धकेल रहा था। वहीं अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु को भी मात्र 129 वोट ही मिले।
अलगाववाद की कोई जगह नहीं
पीडीपी प्रमुख महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती को आवाम ने मोहब्बत नहीं बख्शी। वहीं आतंक की सताई शगुन परिहार ने किश्तवाड़ से अपनी जीत दर्ज की। इस चुनाव में टर्निंग पाइंट माने जा रहे राशिद इंजीनियर सिर्फ अपने भाई की रसीद लंगेट को ही जिता सके। बाकी सीटों पर जमानत जब्त हो गई। जम्मू से लेकर कश्मीर घाटी तक आवामी नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि अब यहां आतंक और अलगाववाद की कोई जगह नहीं है। इस विधानसभा चुनाव में तो पाकिस्तान और अनुच्छेद 370 का नाम लेवा भी नहीं दिखाई दिया। हां, जम्मू-कश्मीर एक राज्य की तरह स्थापित हो यह मुददा है। आगे की राजनीति भी इसी तरफ जाएगी। फिलहाल राज्य में भाजपा ने भाजपा ने 25.64 फीसदी और एनसी 23.43 फीसदी वोट हासिल किए हैं।
जाति नहीं धर्म पर वोट
जम्मू-कश्मीर चुनाव में हर बार की तरह ही इस पर भी मतदान धार्मिकता की ओेट में ही हुआ। जम्मू में चला पहाड़ी, गुर्जर, बकरवाल, एससी, एसटी और डोगरा रंग पीर पंजाल की पहाड़ी पार करने से पहले ही दम तोड़ गया। यही वजह है कि जम्मू में हिंदू बाहुल्य इलाकों में भाजपा का दबदबा रहा। वहीं रामबन, बनिहाल, गुलाबगढ़, बुढ़हल, डीएच पोरा, नौशेरा पर एनसी ने जीत दर्ज की तो राजौरी और डोरू कांग्रेस के हिस्से आई। जवाहर टनल पार करने ही कश्मीर की हरी भरी धरती पर लाल रंग ऐसा चढ़ा कि नेशनल कांफ्रेंस के सहारे सीपीएम भी एक सीट जीत गई।
इसीलिए सिमट गई पीडीपी
पीडीपी ने जिन तीन सीट पुलवामा, त्राल और कुपवाड़ा पर जीत दर्ज की है, ये आतंक प्रभावित सीटें मानी जाती हैं। सीआरपीएफ पर हुआ पुलवामा हमला तो सबको याद ही होगा। वहीं त्राल की पहचान आतंक के पोस्टर ब्वॉय बुरहान वानी से है। कुपवाड़ा पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों का पुराना लैंडिंग ग्राउंड है।