गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के बीच तनावपूर्ण संबंध हर गुजरते दिन के साथ बिगड़ते जा रहे हैं, जिसमें हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्य शामिल हैं, जहां इंडिया गठबंधन के भीतर की गांठ या तो खुलती जा रही है या टूटने की कगार पर है। यह मतभेद अब एक अहम पड़ाव पर पहुंचता दिखाई दे रहा है, क्योंकि, टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कांग्रेस से मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। कांग्रेस धीरे-धीरे खुद को पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभार रही है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के तौर पर पेश करने के किसी भी प्रयास पर अपनी असहमति जताई थी। इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ममता बनर्जी ने किसी भी बड़ी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। हाल ही में कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष शुभंकर सरकार के हड़ताली जूनियर डॉक्टरों से मुलाकात के दौरान ‘गो बैक’ के नारे लगाए गए। अस्पताल में रोगी की मौत से गुस्साए परिवारवालों ने जूनियर डॉक्टरों के साथ मारपीट और धक्का-मुक्की की। इसके विरोध में जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर बैठ गए थे। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शुभंकर और कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल अस्पताल पहुंचा तो उन्हें जूनियर डॉक्टरों के विरोध का सामना करना पड़ा था और उनके खिलाफ नारेबाजी भी हुई थी।
इसके बाद कांग्रेस, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार पर हमलावर हो गई और ममता सरकार को राज्य में ‘खराब कानून-व्यवस्था’ का जिम्मेदार भी ठहरा दिया। यह घटना इंडिया ब्लॉक के भीतर बढ़ती दरार को दर्शाती है, जिसका गठन भाजपा को चुनौती देने के लिए किया गया था। कहने की जरूरत नहीं है कि गठबंधन को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विभिन्न घटक मुख्य रूप से व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण असहमत हैं। यह टकराव सिर्फ पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। गठबंधन के सदस्यों के बीच अंदरूनी कलह दूसरे राज्यों में भी देखने को मिल रही है। आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ हैं, जो पंजाब विधानसभा चुनाव में उनके बीच हुए मुकाबले की याद दिलाता है। दोनों दलों के नेता अक्सर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं, जिससे यह धारणा मजबूत होती है कि इंडिया ब्लॉक बिखर रहा है। दरअसल, इंडिया ब्लॉक की शुरुआत ही अच्छी नहीं रही।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद जनता दल (यूनाइटेड) गठबंधन से बाहर हो गया। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के प्रयासों में नीतीश कुमार सबसे मुखर थे। ऐसी भी खबरें हैं कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के भीतर सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के बीच बाधाएं आ रही हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस सबसे बड़ा हिस्सा चाहती है।
दूसरी तरफ झारखंड में आने वाले दिनों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू होने के साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के साथ कांग्रेस के रिश्तों पर भी सवाल उठ रहे हैं। राजनीतिक जानकार सवाल उठा रहे हैं कि क्या इंडिया ब्लॉक इन आंतरिक संघर्षों का सामना कर सकता है या टूटने की कगार पर है? कुछ लोगों का कहना है कि इंडिया गठबंधन अब शायद ही अस्तित्व में है, एकता और सामंजस्य कहीं नजर नहीं आता है। बस, मौके-बेमौके पर इंडिया ब्लॉक नाम का सुर छेड़ दिया जाता है।