महिलाओं के स्वास्थ्य का रखना होगा ध्यान मेंस्ट्रुअल लीव (Menstrual leave) पर उन्नाव की एकता द्विवेदी जो केंद्रीय विद्यालय में शिक्षिका रह चुकी हैं, कहती हैं कि “ऑफिस में पीरियड्स लीव का चयन वैकल्पिक होना चाहिए, मतलब जो इसे लेना चाहे वो ले और जो नहीं तो वो न ले। ये महिला का अपना निर्णय होना चाहिए। 2 दिन का वैतनिक ( paid) अवकाश ले सकने का प्रावधान होना चाहिए, क्योंकि हमें महिलाओं के स्वास्थ्य और कार्य करने की गुणवत्ता का भी ध्यान रखना है और संविधान में वर्णित समानता के तथ्य का भी|”
लखनऊ में एक निजी संस्थान में काम करने वाली अनुष्का सिंह का Menstrual leave पर कहना है कि “ऑफिस में पीरियड लीव पर सोशल मीडिया पर अलग ही बहस शुरू हो गई है। कई लोगों का मानना है कि ये दर्द तो हर महिला सदियों से झेलती चली आ रही है पर क्योंकि अब वक्त बदल रहा है तो अब सोच और नियमों को बदलने की जरूरत है। पीरियड के वक्त न सिर्फ महिला दर्द से गुजर रही होती है, इसके साथ ही मूड स्विंग्स और हार्मोनल बदलाव भी होते है। ऐसे में महिलाओं को आराम की जरूरत होती है। कई जगहों पर साफ वॉशरूम की कमी होती है ऐसे में महिलाओं को काफी दिक्कत होती है। इसलिए ये लीव महिलाओं की जरूरत नहीं हक है।”
हैदराबाद की मुस्कान माहेश्वरी कहती हैं कि “मेरे मुताबिक ऑफिस में पीरियड्स लीव होनी चाहिए। क्योंकि पीरियड्स सभी महिलाओं को सामान तरीके से नहीं होता है। कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें शुरुआती 3 दिनों में झकझोर देने वाला दर्द होता है। जिसमें असहनीय पेट और कमर में दर्द, पूरा दिन थकान, पैरों में दर्द जैसी दिक्कतें होती है और ऐसे समय में कुछ महिलाएं चलने फिरने या फिर किसी भी काम करने में सक्षम नहीं होती। ऐसे में सामान्य बीमारी को देखते हुए अगर कोई भी संस्थान महिलाओं के हित के लिए उनके इस दर्द को समझे और उन्हें या तो घर से काम करने या अवकाश दे तो मेरे मुताबिक बेहतर होगा। अक्सर ऐसा देखा गया है की कई महिलाएं सैलरी कटने के कारण अपनी सेहत को नजरअंदाज करते हुए ऑफिस में काम करने आती है जो बहुत ही खतरनाक है। महामारी के दौरान चिकित्सक भी आराम करने की सलाह देते हैं जिसको देखते हुए मुझे लगता है कि ऑफिस में पीरियड लीव मिलनी चाहिए ताकि उन मुश्किल दिनों में महिलाएं को आराम मिल सके।”
होती हैं कई तरह की समस्याएं बिहार के पटना की रहने वाली प्रतिमा कहती हैं कि “बिहार के सरकारी संस्थानों में पीरियड लीव की सुविधा है। जिससे वहां काम करने वाली महिलाओं को काफी सहूलियत मिलती है। इसके उलट निजी संस्थानों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है। खुद निजी संस्थान में काम करने वाली प्रतिमा कहती हैं कि उन्हें महीने के उन दिनों में काम करने में काफी परेशानियां आती हैं। सिर्फ दर्द ही परेशानी नहीं देता है इस दौरान उन्हें लो ब्लड प्रेशर की समस्या आती है इसलिए उनका घर से बाहर निकलना परेशानी का सबब बन जाता है। लेकिन ऑफिस से अवकाश CL या PL पर ही मिलता है और अगर काम का बोझ ज्यादा है तो वो अवकाश भी नहीं मिलता।”
गलत फायदा ना उठाएं महिला कर्मी मैन्स्ट्रुअल लीव पर बात करते हुए उत्तर प्रदेश के उन्नाव की दीक्षा कहती जो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, कहती हैं कि अब ज़माना बदल गया है। मेंस्ट्रुअल लीव का तो पहले जिक्र तक नहीं होता था लेकिन अब ये प्रमुख मुद्दा बन रहा है। उन्नाव जैसे छोटे शहरों में इस तरह का मुद्दा एक बड़ी बात है। कुछ महीनों पहले ही उनके प्रिंसिपल से कुछ महिला टीचर्स ने मेंस्ट्रुअल लीव पर बात की थी जिसे उनके प्रिंसिपल ने साफ मना कर दिया। गौरतलब है कि वो प्रिंसिपल भी एक महिला ही थीं। दीक्षा ने बताया कि उनकी प्रिंसिपल का जवाब था कि उन्हें इस परेशानी के बारे में पता है लेकिन उनकी दी गई इस लीव का कई शिक्षिकाएं गलत फायदा उठा सकती हैं यानी अगर उन्हें कोई अवकाश लेना है तो वो इस पीरयड लीव का प्रयोग कर सकती हैं।
स्कूलों में भी हो Menstrual leave इस मुद्दे पर कानपुर की दीपिका शर्मा जो एक निजी कॉलेज में 12वीं की स्टूडेंट हैं, कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल लीव की बात सिर्फ कार्यालयों में ही नहीं स्कूलों में भी होनी चाहिए क्योंकि स्कूल में कोई कैजुअल लीव नहीं होती। वहां पर रोज क्लास में उपस्थित रहना होता है। ऐसे में पीरियड्स के दौरान हमें कई तरह की समस्या होती है और सबसे ज्यादा मुश्किल क्लास में लगातार कई घंटों तक बैठने में होती है। क्योंकि हमें क्लास में एक्टिव और एकाग्र दिखना होता है।